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तवारिख - तीर्थ - पावापुरी - और - गुणशिलवन उद्यान. (२४७ )
दुसरामंदिर बाजार में तीर्थंकर चंदाप्रभुस्वामीका - इसमें तीर्थकर चंदा की मूर्त्ति तख्तनशीन है. इसकेपास तीसरामंदिर तींकर अजितनाथ महाराजका - इसमें तीर्थकर अजितनाथ महाराजकी मूर्ति तख्तनशीन है, चौथामंदिर महोलेचोखंडी में तीर्थंकर रिषभदेव स्वामीका - इसमें तीर्थकर रिषभदेवस्वामीकी मूर्ति बिराज - मान है, इसकेपास एकउपाश्रय जैनमुनिलोगोके ठहरनेकेवास्ते मौजूद है, बाजार सुबेविहारका उमदा और हरेक किसमकी चीजे यहां पर मिलसकती है, तुंगीयानगरी जोकि आजकल तुंगीगांवके नामसे मशहूर है सुवेविहारसे ( २ ) कोस दखनकीतर्फ वाके है, तुंगीयानगरीके श्रावकोका बयान जैनशास्त्रोंमें जो दर्ज है - वह यही नगरीथी. पेस्तर बडी आबादी और यहांके श्रावक वडेधर्मपावंद थे. मगर आजकल - यहांपर - न - कोइ श्रावक है - न - जैनमंदिर है, सीर्फ ! एक छोटासा गांव आबाद है,
[तवारिख पावापुरी और गुणशिलवन उद्यान, ]
तीर्थंकर महावीरस्वामीकी निर्वाणभूमि पावापुरी एक जैनतीर्थ है, केवलज्ञान होनेकेवाद जब तीर्थकरमहावीरस्वामी यहां तशरीफ लायेथे देवताओने उनका यहां समवसरण बनायाथा, समवसरणं उस जगहों कहते है जहां धर्मकेबारेमें तालीम आमलोगों कों दिइजाये इंद्रभूति - अग्निभूति - और - वायुभूतिवगेरा (११) वडेचेले इसीपावापुरी में हुत्रे, वाद पावापुरी से रवाना होकर मुल्कों में आमलोगोंकों तालीमधर्मकीदिs, और हरजगह धर्मकीवाज करते रहे, जब उनकी जंमर ( ७२ ) वर्षीहुइ फिर पावापुरीमें आये, और अख़ीरका चौमासा यहां किया, जब उनके निर्वाणहोनेका वख्त आया दोदिन
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