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( २३८ ) तवारिख-तीर्थ-राजगृही. लेकिन ! उसने अपना तख्त चंपानगरी में रखना पसंदनही किया, और नयाशहर पटना आबादकरके वहांपर अपना रहना वसना इख्तियार किया, ___रोहिणीयाचौर इसी राजगृहीके पास वैभारगिरिकी कंदरामें रहनेवाला था, और किसीसे गिरफतार नहींहोसकताथा, एकरौज इत्तिफाकसे उसने तीर्थकर महावीरस्वामीकी कुछ धर्मतालीममुनी,
और उसतालीमसे उसको नसीहतहुइकि-में-ऐसे फेलोंकों छोडकर परमात्माकी इबादतमें दिललगाउ, गरजकि-उसने चौरीकरना छोडकर धर्मपर दिललगाया, राजगृही आजकल एकछोटासा कस्वाहै, करीब अढाइहजारवर्ष के पेस्तर यहां झलाझलरौशनी और दौलतथी, आजयहां न-वह-दौलतहै-न-रवन्नकहै, असलमें-जवाल-और-कमाल सबको लगाहुवाहै, राजगृहीका एकमहोल्लानालंदनामका-जो-बहुतमशहूर और मारुफथा, जिसमें जैनलोगो. की बहुतआवादीथी, चीनामुसाफिर हवांक्तसांग-और-सीनयनअपनेसफरनामेमें बयानकरते हैकि-हमने-राजगृहीकों और नालंद महोल्लेकोंभी देखाथा. बडेबडे पंडित-और-दोलतमंद लोग यहां रहतेथे. इसवख्त राजगृहीमें जैनोकी आवादी नहीरही. जैनश्वेतांपरमंदिर और एक-बडी आलिशान जैनश्वेतांवर धर्मशाला-करीव (४) विधेके घेरेमें पुख्ता बनीहुइ है. इसमें तीनकोठरी-जोदखनकीतर्फ बनीहुइ है. श्रीमती-हुलासवाइ- साकीन बंबाइबनाइहुई है. अठारांकोठरी पंचोकीतर्फसे-और-बीचमें एकवंगला -शेठ रुपचंद रंगीलदास-साकीन एवला-मुल्क दखनवालोका बनायाहुवाहै. एकबगीचा बीचइसी धर्मशालाके बनाहुवा जिसमें गुलाब-चमेली-बेला-गुलदाउदी-जुही--निवार-और हारशिंगावरोराकेफुल पैदाहोते है और हमशांकी पूजनमें चढायेजाते है यात्री
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