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( २३४ ) तवारिख-तीर्थ-भदीलपुर. के रौज उनकों यहां केवलज्ञान पैदाहुवा, देवकीजीके (६) पुत्र इसी भदीलपुरमे परवरीश हुवे, पेस्तर जोकुछ रवन्नकथी अवनरही,-आजकल-यहां-न-कोई श्रावकहै,-न-जैनश्वेतांबर मंदिरहै, पहाडपर बेशक ! एक मंदिरहै मगर वगेर मूर्तिके खालीपडाहै. हटवरीया गांवसे एक आदमीकों शाथलेकर-पहाडपर जानाचाहिये, वगेर आदमीके रास्तेका पता-न-लगेगा. पहाडका चढाव करीब ( १ ) कोशका होगा. जिधर देखो तरह तरहकी वनास्पति और हरेक किसमके दख्त खडे है. जब पहाडके सीरेपर जाओगे बडा मेंदान और वहांपर एक आकाश लोचन तालाव मिलेगा. इसके पास थोडी दूरपर एक खाली जैनश्वेतांबर मंदिर जो उपर लिख चुके है खडाहै. उस जगहपर जाकर तीर्थकर शीतलनाथ महाराजकी इबादतकरे और अपनी भदीलपुर तीर्थकी जियारत कामयाब हुइ समझे, आकाश लोचन तालावकी पूर्वतर्फ एक पाताल पानीकुंड बनाहुवाहै,-पहाडसें करीब (६) घंटेमें दर्शन करके नीचे हटवरीया गांव आसकतेहो, भदीलपुरके पहाडकों आजकल यहांके लोग कोलुका पहाड वोलतेहै, मगर असली नाम भदीलपुर तीर्थ है, हटवरीया गांवसे इक्कमे सवार होकर वापिस हंटरगंज होतहुवे शहर घाटी आकर रातको आराम करना. और दुसरे रोज सवेरे चलकर दिनके दो-वजेतक गया शहरको आना, गया सहरसे रैलमे सवार होकर मानपुर-पैमारवजीरगंज-तिलैया टेशन होतेहुवे नवादा टेशन उतरे, रैलकिराया दो-आने-नवपाइ, यहांसे खुश्की रास्ते पंच तीर्थीकी जियारतकों जावे,
नवादेसे पंचतीर्थकों जानेकेलिये सवारी मिलसकती है, खुकी रास्ते अंदाज ( २० ) कोसके घेरेमें पंचतीर्थीकी जियारतको
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