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( ३८ ) तवारिख - अश्वावबोध - और - शकुनिकाविहार.
कभी - ज्ञानहो जाताथा - और - पूरवभवकी बात उनके ज्ञानमें दिखपडती थी. जिसघोडेकों तीर्थंकर मुनिसुव्रतस्वामीने तालीमधर्मकीदिइथी - उसको - जातिस्मर्णज्ञानहुवा और वहअपनापुरवभव को देखलगा, ज्ञानियोंकी सोबतसें जानवरो कोंभी इतनीलियाकत होजातीहै, जमानेहाल में वैसेज्ञानी मौजूदनहीरहे- मगर - जैसे है उनकीभी सोवतकरनाचाहियें. जिस जसे घोडेकों ज्ञानहुवा - उमरभर उसने किसीजीवकों नहीसताया, जब उमरउसकी खतमहूइ मरकर - स्वर्गमं देवगतिको पाया, और जबवहां अपने अवधिज्ञान से देखनेलगा तो- उसको मालूमवाकि मुजे - जोस्वर्गमीला है बदलतीर्थकर - निसुव्रतस्वामीकी मीला है फौरन ! स्वर्ग भरुअल में आया, और जहांउसनेझान पायाथा - तीर्थकर मुनिसुव्रतस्वामीका मंदिरतामीर करवाया समवसरणकी शिकलवनाइ, और उसकेसामने एक मूर्त्ति - घोडेकी तामीरकरवाइ तीर्थकरमुनिसुव्रतस्वामी - तालीम धर्मकी देरहे है - ऐसी शिकलभी बनायी, गरजकि- उसदेवने शहरभर अछ अश्वावबोधतीर्थकीनीवडाली उसरौजसे अश्वाववोधतीर्थ कहलाया
भरुअछका तीसरा नाम - शकुनिकाविहारभी - जैनकितावामेंमशहर है, सिंहलद्वीप में पेस्तर एक - श्रीपुरनामका शहर आवाद था, उसख्त वहां के राजाको सातलडके- और - एकलड़की जिसकानाम सुदर्शना था, निहायत खूबसुरत थी, वडीहोनेपर उसने इल्मपढा, और जब - लाइक उमरहुइ-तो- उसके वालिदकों इसवातका फिक्र - हुवा कि किसके शाथ इसकीसादीकरना चाहिये, एकरौजकी बात है सुदर्शनालडकी - अपने वालिद के पास बैठी थी शहरभरुअलका एकधनेश्वरनामका शाहुकार वहां उसके दरवार में आया, राजाको मुजरा किया - और - बाद उसके अपनीसफरकेबारेमें कुछवातें करने लगा, वातें होती थी कि अचानक उसको छींकआ, और मुंहसे
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