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तवारिख-तीर्थ-अयोध्या. (२१९ ) यहां दीक्षा इख्तियारकिइ, बारांवर्षतक तपकिया और पोषवदी (११) के रौज उनकों यहां केवलज्ञान पैदावा, तीर्थकरअभिनंदन महाराज सुमतिनाथ और अनंतनाथ महाराजभी इसी अयोध्या पैदाहुवे, और उनके चारचार कल्याणक यहांहुवे,
रघुवंशके खानदानमें रामचंद्रजी और लक्ष्मगजी बडेबहादुर शख्शइसी अयोध्यामें हुवे. जिनकानाम दुनिया में मशहूर और मारूफहै, लंकायुद्धमें उनोंने जोजो वहादुरी किड, रावणके भाइ विभीषणको लंकाका राज्य दिया और सती सीताको अपनी कोवत वाजुसे वापिस लाये जोकि-रावन छलकरके लेगयाथा,
सत्यवादी हरिश्चंद्र इसी अयोध्याका राजाहुवा जिसने अपने सतके उपर राजपाट छोडदिया, और अपना वचन पुराकरनेके लिये अपनी रानी और लडकेकों वेचकर खुदभी विकगया, देखिये ! अपने सत्यके पीछे उसने कितनी तकलीफ उठाइ ? हरशख्शकों-लाजिमहै अपने सत्यकों-न-छोडे, और धर्मपर सावीत, कदम रहे, चंद्रावतंसकभी एक धर्मपावंद राजा इसीअयोध्याके तख्तपर हुवा, एक रौजका जिक्रहै उसने अपने महेलमें खडेहोकर शामके छबजेसे परमात्माकी इबादत करना शुरूकिइ, और दिलमें यहशर्तकर लिइकि-जो-चिराग मेरे सामने जलरहाहै जबतक जलतारहेगा-में-खडेखडे इबादत करता रहुगा, चिरागमें तेल उतनाथा-जो-तीन घंटेतक जलसके, इबादत करते जब नवबजे एकनोकर जो उसजगह पहरा देताथा सोचा ! कि-मालिकको अंधेरा-न-होजाय ! यहसमझकर चिराग तेलसे भरदिया, जब रातके बारांबजे वोभी तेल खतमहोगया, नोकरने फिर दोबारां तेलभरदिया, जब रातके तीनबजे फिर चिरागगुल होनेलगा. तीसरे मरतबा फिरतेल डाला, नोकरका इरादाथाकि-मालिककों
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