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तवारिख - तीर्थ - मथरां.
(४७) उनका दुसरा महिना मीति विरामीके रोज यह एक पानी पीनेका स्थान अर्पण करनेमें आया, छठे लेखमे लिखाहै अरिहंत महावीरकों नमस्कारहो, राजावासुदेवके संवत् ( ९८ ) वर्षारूतुका चौथा महिना ( ११ ) के यह एक स्त्रीकी तर्फसे वनवायीगs. और पारिहासिक कुलकी पौर्णपत्रिका शाखाके आचार्य आर्यरोहने यहस्थापन कि यह लेख एक अलगपाषाण पर है इस लिये निश्चय नही कियाजाताकि-यह-क्याचीज स्थापनकि,
इनमें जो अवल लेखकी अखीरमें कौटिकगछ- वाणिज्यकुलवज्री शाखावगेरा नामदर्ज है जैन श्वेतांबर आम्नायके कल्पसूत्र से संबंध रखते है, तीसरे लेखकी अखीरमें जो कीर्त्तिमान वर्द्धमान स्वामीकी मूर्ति - कौटिक गछ- वयरीशाखा के आचार्य नागनंदीने प्रतिष्ठित कि लिखा है, यह मूर्ति जैन श्वेतांबर आम्नायकी सबुत सबुत होती है, क्योंकि - कौटिकगल - वयरीशाखा - कल्पसूत्रमें साफ जाहिर है, और कल्पसूत्र जैन श्वेतांवर आम्नायका सूत्र है, जमीन से निकलेहुवे शिलालेखका और कल्पसूत्रका पाठ एक मिलगया, - चोथे लेखक अखीरमें कौटिकगछ- प्रश्नवाहनकुल - मध्यमा शाखा लिखा है - छठे लेखकी अखीरमें पारिहासिक कुल और पौर्णपत्रिका शाखा लिखी- ये सब शाखा - कुल - और गणभीजैन श्वेतांबर आम्नायके शास्त्र - कल्पसूत्र से संबंध रखते है. जोजो संवत् लिखाहै हिंदुस्थान और सीथियादेशके - बीचके राजा कनिष्क और वासुदेवके जमानेके है, अबतक इन संवत्सरोकी शुरूआत मालूम नही हुई मगर इतना सबुत होसकता है कि - हिंदुस्थान और सीथिया देशके राजाओं का राज्य इस्वी सन के अवल सेकडेकी अखीर सें- और
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