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तवारिख - तीर्थ - रत्नपुरी.
माघ सुदी (१३) के रौज दुनिया के एशआराम छोडकरदीक्षा इख्तियारकि. दोसालतक उनोने तप किया, और पोषसुदी (१५) के रौज उनको यहां केवलज्ञान पैदाहुवा, इंद्रदेवते वगेरा उनकी खिदमत में आते थे, पेस्तर बडेबडे वनखंड - उद्यान -और लतावल्ली यहां इसकदर होती थी कि - जमीन - हमेशां सब्ज बनी रहतीथी, बडे बडे गुलजारबाग - और - तरहतरह के फल- केले - अनार - अमरुद - जामन - और - किसमिसके पेंड यहां मौजूदथे, चावलकीपैदाश यहां बहुत होती थी. मंदिर तीर्थकर धर्मनाथमहाराजका यहां हमेशां मौजूदरहा, तीथम यहकीमीरवाज हमेशांसे होताचलाआया कि - एक मंदिर पुराना होकरगिरगया किसी खुशनसीबने दुसरा बनवाकर तयार किया, इसीतरहसे तीर्थ कायम बना रहता है, -
रत्नपुरीकी आबादी आजकल कुछदेढ हजार घरोंकी रहगई. धर्मशाला ( ४ ) जिनमें ( २ ) धर्मशाला रायबहादूर धनपतसिंहजी - साकीन- मुर्शिदाबादकी - ( १ ) लखनउवाले जहोरी छोटन लालजीकी - और ( १ ) पंचायती की तर्फसे बनी हुई है. पूरवतर्फ एककोठरी भंडारी - रूगनाथप्रसादजी साकीन कानपुरकी एकमुल्कगुजरात - भावनगरवालोंकी - और - एककोठरी पंचायतीकी त फसे - बनी हुई है, मंदिर - धर्मशाला-और- कोठरीयोंके अतरफ एक पुख्ता कोट खीचाहुवा - करीब - पांचविधेके फासले में मानो ! एक हातामालूम देता है, यात्री धर्मशाला में जाकर कयामकरे और तीर्थकी जियारतकरे, यहांपर जैन श्वेतांबर मंदिर ( २ ), एकवडा - दूसराछोटा है, वडेमंदिर में तीर्थंकर पार्श्वनाथमहाराजकी शांमरंग मूर्त्ति करीब देहाथवडी तख्तनशीन है, दाहनीतर्फ तीर्थकर अनंतनाथ जीकी - और - बायी तर्फ - तीर्थकर धर्मनाथजीकी एकही सिंहासन पर जायेनशीन है, मंदिरके बीचले भागमें तीर्थंकर धर्मनाथजीके
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