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( १८२ ) तवारिख-तीर्थ-हस्तिनापुर. रातके नगीने जमीनसे निकस आते है इससे सबुतहोता है पेस्तर यहांके लोग बडेमालामालथे,... जोकोइयात्री हस्तिनापुरमें तशरीफलावे अपने खानेपीनेका इंतजाम-मेरट-या-मोहानागांबसे करते आवे, (यानी) आटादाल -धी-सकर-मिठाइवगेरा शाथलेतेआवे,-अगर किसीचीजकी दरकार पडे पूजारीको बुलाकर कहसकतेहो वह इंतजाम करसकेगा,
और गनेशपुरेसें-या--वसुमागांवसें चीजमंगवाकर तुमकोदेसकेगा, खास हस्तिनापुरमें--जहांकि--बडाआलिशान जैनश्वेतांवरमंदिर और धर्मशाला बनीहुइ है यात्रीउसमें कयामकरे, और तीर्थकी जियारतकरे, पेस्तर यहां तीर्थकर शांतिनाथ-कुंथुनाथ-और-अरनाथमहाराजके बडेबडे कीमतीमंदिर बनेहुवेथे, बीचलेदिनोंमें जब हस्तिनापुर विरानहोतागया ऐसा वख्तभी आगयाथाकि-योही दूरपर एकद्रख्तकेनीचे तीर्थकर शांतिनाथ-कुंथुनाथ-अरनाथ महाराजके कदमकी छत्रीही सीर्फ ! कायमरहगइथी. जैनश्वेतांवर श्रावकोंकी आबादी पेस्तरसेही बरवादहोगइथी, जब-जहोरी-परतापचंदजी-पारसान-साकीनकलकत्ता यहांपर तशरीफलाये, और देखाकि-तीर्थ-दिनपरदिन विरानहोजाताहै करीब एकलाखरुपये खर्चकरके उमदा आलिशान जैनश्वेतांबर मंदिर तामीरकरवाया, और संवत् (१९२९) वैशाखमुदी तीज़केरौज उसकी प्रतिष्टाकिइ, एकधर्मशाला निहायत उमदा बनवाइ जिसमें (६) कोठरी और आठदालान बनेहुवेहै, जोकोइ जैन श्वेतांबर यात्रीआतेहै इसीमें कयामकरते है, ज्यादहयात्री आनेपर बेशक ! बिदून दुसरी धर्मशालाके तकलीफहोती है कोइखुशनसीब यहां दुसरी धर्मशाला तामीरकरावे उमदावातहै, बडेतीर्थोमें बहुतसीधर्मशाला बनीहुइ रहती है और वहां दूसरी बनवानेवालेभी बहुत है, मगर तारीफ उसी शख्शकी है जो एसीजगहपर खयालकरे,-
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