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तवारिख - तीर्थं - आरासण.
सुदि १४ शुक्रे - वृहदगछीय श्रीचक्रेश्वरसरिसंताने पूज्य श्री सोमप्रभसूरिशिष्यैः श्रीवर्द्धमानसूरिभिः श्रीशांतिनाथ विवं प्रतिष्टितं -- कारितं श्रेष्टिआसलभार्या मंदोदरी - तत्पुत्र श्रेष्टिगलाभार्याशील तत् पुत्रमेहातटभुजेन साहुखांखणेन- निजकुटुंब श्रेयसे--स्वकारितदेवकुलिकायां स्थापितंच-मंगलमहाश्रीभद्रमस्तु —
सामनेकेदेवालय में वेदीपरलिखा है - संवत् [१३३५] मे श्री आदिनाथ भगवान की मूर्ति श्रीवर्द्धमानसूरिजीने प्रतिष्टित किs, और नीचे उसके ऐसाभी लिखा है श्रीमंदाहडगळे श्रीमंगलमस्तु इसके आगेके देवालय में लिखा है संवत् [ १३३५] मे तीर्थकररिषभदेव भगवान की मूर्ति - श्रीचंद्रसूरिजी के शिष्यवर्द्धमान सुरिजीने प्रतिष्टितकि, इसके आगे के देवालयमें संवत् [ १३३८] ज्येष्टसुदि १४ शुक्रवारकेरोज श्रीदेवेंद्रसूरिजीने तीर्थकर चंदाप्रभुकी मूर्ति प्रतिष्टितकि, इसके आगे सभामंडपकों छोड़कर दुसरेदेवालयकी वेदीपर लिखाहै संवत् (१३४३) माघसुदि (१०) शनिवार केरौज-वृ- श्रीहरिभद्रसूरिकेशिष्य- परमानंदसुरिने तीर्थकर अरिष्टनेमिभगवानकी मूर्ति प्रतिष्टितकि, इसके आगे के देवालय की -- वेदीपर लिखाहै संवत् (१३४४) ज्येष्टसुदि (१०) मी केरौज तीर्थकर रिषभदेव भगवान की मूर्ति प्रतिष्टितकि, प्रतिष्टा करने वालेआचार्य महाराजका नाम तोडा गया है, इसके आगे के
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