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तवारिख पंचतीर्थी.
लताहै- बादमें-वह-लाख रूपये - खर्चतेभी-न-निकलेगा, दाहनीतर्फ रंगमंडपकी छतसें अय्याम वारीशमेंपानी गिरता है उसकीभी मरम्मत होना दरकार है, आजकल जोजो श्रावक - जातेहै उपरसे देखभालकर चलेआते हैं, मगर यह खयालनही करते कि - हमारे बुजुर्गों के बनाये हुवेमंदिरका क्या हाल है, ? - जिसकों बने आज (४००) वर्षहोगये मरम्मत होना दरकार है - या नही ? लाजिम है इस मंदिर - की - रकम चाहे जहां जमा हो - मरम्मत में लगादेनाचाहिये,
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धरणाशाहशेटके खानदानमें उनके भाइवेटे कस्बे घाणेरायमें अबभी मौजूद है, हरसालजवचैतवदी (१०) मी - के - रौज तीर्थरानकपुरमें यात्रीयोंका मेलाभरताहै मंदिरकेशिखरपर उनहीकीतर्फ सें बनवाइहुइ धजा चढाइजाती है, अंगी - पूजाभी उसरौजमंदिरमें ऊनही कीतर्फ सें होती है. संवत् (१९६०) चैतवदी (१०) मीके रौज हमइसतीके मेले में मौजूदथे, यात्रीयोंकामेला बहुतभराथा धरणाशाहशेटके खानदानकेलोग - घाणेरायकस्बेसे आयेथे औरशिखरपर धजाचढाइथी. शाबाश है ! ऐसे सखी - और - इकवालमंदके भाइवेटोंको !! जो - अबतक - अपने बुजुर्गों के नामसे - इतनाभीधर्मका कामचलाते है, कुलधर्मशास्त्रोंकी यहीनसीयत है कि बेटावेटी - रिस्तेदार - औरत - चांदी-सोना - और - जवाहिरात कोइशाथ नहीजायगा, सीर्फ ! धर्मही शाथजायगा,
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मेलेकेरौज यहां बहुत लोग जमा होते है, कभी पांचहजार और कभी सातहजारतक यात्री यहां आते है, जलसाभी अछा होता है, दुकाने ethasarat लगती है, मंदिरमें पूजन - गीतनृत्य- अंगी -रौशनी वगेरा अजहदजलसा होता है, जहांतकवनपडे उसरौजकी जियारत जरुरकरनाचाहिये, हमने शंगतरासासे रानकपुरकमंदिर का - नकशा
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