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तवारिख - तीर्थ - केशरीया,
( १६१ ) सुपार्श्वनाथ भगवानकी ( १ ) हाथवडी मूर्ति - राजा संप्रतिकी तामीर किइहुइ इसमे तख्तनशीन है, रंगमंडपमें एकतर्फ तीनचरनपादुका - जायेनशीन है और उनपर संवत् ( १६९२ ) भट्टारक श्रीहीर - विजयसूरि के बाद - जो - भानुचंद्रगणिहुवे है उनकानाम लिखा हुवा है, जोकोई यात्री शहर उदयपुरकों आवे आघाटपुरकी जियारत जरूरकरे, कौंकि - यह पुराना शहर है, सवारीके लिये इक्का-बगी - उदयपुर में तयार मिलती है -दो घंटे में दर्शनकरके लोट आसकतेहो, आघाटपुर वापिस उदयपुर आना, औरफिर केशरीयाजी तीर्थ जानेकी तयारी करना,
उदयपुरसे ( २० ) कोशके फासलेपर खुश्कीरास्ते - केशरीयाजी- एकमशहूर तीर्थ है, सवारीकेलिये दो घोडोकीवगी-या-बेलगाडी जो चाहो मिल सकती है, रास्ते में ( ९ ) चोकीयां आयगी उद यपुर से रवाना होते वख्त पांचरुपयेके उदयपुरी पैसे इसलिये साथ लेने चाहिये कि - रास्ते में - भील लोग - जो- चोकीदार है, और फीचौकी-चारचार आने - एकगाडीके लेते है, नवचौकीके नाम-१, बलीचा - २, कायां - ३, वारांपाल- ४, बोरीकुडा-५, टीडी-६, पडोगा- ७, बारां-८, परसाद-और-९, पीपली, लोटतेवख्त चौकीएक-धुलेवाजीकी ज्यादह देना पडेगी, मुकाम परसाद पर आठ आने लगते है, चाहे बगीहो-या बैलगाडीहो रास्तेमें एकरोज मुकाम जरूर करना चाहिये. -सवेरके चले शाम तक नही पहुच सकते,
जव खास केशरायाजी तीर्थ पहुचजाओगे ( ५०० ) घरोंकी आबादीका कस्बा घुलेवा मिलेगा, धर्मशाला यहांपर चार बनीहुइहै, जिसमे एक बहुत बडी - एक पुरानी - एकमेहता गोविंदसिंहजी साकीन उदयपुरकी - और - एकजय पुरवालोंकी - इनचारोमें करीब
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