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तवारिख - तीर्थ - केशरीया:
मंदिरकी बहारकीपरकम्मामें- एकजिनालय तीर्थंकर पार्श्वना नाथस्वामीका बनावा - मूर्ति जगवल्लभपार्श्वनाथजी की करीब साढेतीनहाथवडी — जायेनशीन है, और उसपर लिखा है संवत् (१८०९ ) वैशाख सुदीपंचमी शुक्रवारकेरौज यहतामीर किइगर, और तपगछके सुमतिचंद्रगणिजीने इसकीप्रतिष्ठा किइ, केशरीयाजीकेमंदिरकी पीछाडीकी दिवारपर तरहतरहकीकारीगीरी-पुतलीये - और - गुलदस्ते बने हुवे है, इसमंदिरकी तामीरात में अंदाज (१५०००००) रुपयेसर्फ हुवे कहे जाते है - अगरकोइयात्री - केशरी - याजी महाराजकी मूर्त्तिपर - सवालाखरुपयोकी जेवरात - जोकि -यहांके जाने में जमा है - एकरौजकेलिये चढानाचाहे - तो - ( २३ ) रुपये सफहोगा. - यानी — मंदिरकेखजाने में देना होगा, अगरकोइयात्रीमंदिरमें रौशनीकरानाचाहे तो - एकरौजकेलिये - ज्यादहसँज्यादह ( १६ | | | ) रुपये खर्चलगेगे, औरकम रौशनीकराना चाहे - तो ( २ ) तकभी होसकती है, जिसकी जैसीताकातहो - वैसा करे, यात्रीकों तीर्थ की जगहपर दिलकेदलेर होनाचाहिये. केशरीयाजीमहाराजके मंदिर में नोकर-चाकर- छडीदारवगेरा (२७) आदमी हरहमेश हाजिर रहते है, - और - खर्च भी - इसतीर्थ में ज्यादहहै, - वनस्पत और तीर्थोके - माकुलपैदाशभी यहां अछीहोती है - जिससे तमामरवन्नक बनी हुई है, -
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हरसाल चैतवदी अष्टमीकेरोज यहांपर यात्रीयोंका मेला भरता है उसरौज महाराज उदयपुरकी तर्फसें हाथी-घोडे-फौज-सवार वगेरा मयलवाजमाके आते है और बंदोबस्त करते है, बाजानकारखाना - कोतल घोडे - संगीत कलावगेरा जुलुसके साथ-भगवानकी सवारी मंदिरसे - छत्रीतक जाती है, यह वही जगह है, जहांसें केशरीयाजी महाराजकी मूर्ति जमीनसें निकलीथी, घुलेवा
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