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तवारिख - पंचतीर्थी.
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घाणेरायसे रवाना होकर यात्री सादरीगांव जावे, जो करीब चारकोशके फासलेपर वाकेहै. जैन श्वेतांवर श्रावको के घरवहां करीव (४०० ) और एक - बडाआलिशान जैन श्वेतांबर मंदिरबनाहुबा, इसमें मूलनायक - तीर्थकर चिंतामणि पार्श्वनाथजीकी मूर्त्ति करीब देढ हाथ वडीतख्तनशीन है, इसपर लेखनही, राजासंप्रतिकी तामीरकराइहुइ मूर्त्तियोके निशानात इसपर पाये जाते है. गर्भद्वारकी दोनोंतर्फ जो-दो - मूर्ति - जायेनशीन है उसमें वायीतर्फकी मूर्त्तिपर संवत् ( १६८६ ) और तपगछकानाम लिखा है, मंदिरकी - परकम्मामें दाहनीतर्फ एकदेवालय में एकजगह एकमूर्त्तिपर संवत् ( १६४४ ) और तपगछ- हीरविजय विगेराके नाम लिखेहै, रंगमंडप निहायतबुलंद और सवकाम पुख्ता है, यात्री सादरीगांव के मंदिर के दर्शनकरके - तीर्थ - रानकपुरकी जियारतकों जावे, जो पंचतीर्थी के पांad नंबर पर और सादरीगांवसे अंदाज तीनकोश फासलेपर है, सादरीसेरवाना होतवख्त चौकीदार मीणा - शाथलेना चाहिये, वगेरचौकीदार के रास्ते में तकलीफ होगी. और राज्यकी तर्फसेभी सख्त मुमानीयतहै, रास्ता कठीन - पहाडोके घेरे में - बडेबडे झाडीखडकों पारकरके जाना होगा, चौकीदार हरेक जगहका वाकीफ होता है. -
जब करीब रानकपुरके पहुचोगे बीचझाडी खडके एकआलिशान त्रैलोक्य दीपक - जैन श्वेतांबर मंदिर बतौर स्वर्ग विमानके दिखला देगा, फौरन ! गाडीसें उतरकर मंदिरकों नमस्कार करों. और अपनी तकदीरका शुकरमनाओकि - जिसने हमकों इस जगहपर पहुचाया, इसमंदिरकी बनावट और खूबसुरत देखकर ताज्जुब करोगे, जबधरणाशाह शेठनेइसकों बनाकर तयारकरवायाथा इसकी खूबसुरत देखतेतो मालुमहोताकि - झलाझल रौशनी
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