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(६२) सवाने-उमरी.
(संवत् १९५७ का चौमासा शहर मुर्शिदाबाद,-) - लखनउसे रैलमें सवारहोकर महाराम तीर्थअयोध्याकों गये, यह शहर तीर्थंकर-रिषभदेवमहाराजकी-जन्मभूमिहै, उसकी जियारत किड, और वहांकी जोजो मशहुरवातेथी अपनी नोटबुकमें दर्जकिइ, अयोध्यासे रत्नपुरी जो सातकोशके फासलेपरवाके है,
और तीर्थकर धर्मनाथकी जन्मभूमि है वहांजाकर उसकी जियारत किइ, और वहांकी तवारिख अपनीनोटबुकमें दर्जकिइ, रत्नपुरीसे रवानाहोकर वापिस अयोध्या आये. और अयोध्यासें बनारसकों गये, तीर्थकर सुपार्धनाथ-और-पार्धनाथकी जन्मभूमि बनारस पुराना जैनतीर्थ है, उसकी जियारतकिइ, वहांके पुराने शिलालेख
और तवारिखकीबाते अपनी नोटबुकमें दर्जकिइ, बनारससे तीन कोषके फासळेपर मौजा-सिंहपुरी-तीर्थकर श्रेयांसनाथकी जन्मभूमि-और-सिंहपुरीसे सातकोशके फासलेपर चंद्रावती-जो-तीर्थकर चंदापभुकी जन्मभूमि है, वहांजाकर जियारत किइ, और जो जो अजुबा वाकातदेखे अपनी नोटबुकमें दर्जकिये. बनारससे र. वानाहोकर मोगलसराय जंकशन होतेहुवे-गयालाइनसे नवादाटेअन गये. और वहांसे पंचती की जियारतकोलिये रवानाहुवे, यह पंचतीयों खुश्कीरास्तेका मुकामहै, और करीब बीशकोशके घेरेमें है, नवादेसे रवानाहोकर अवल राजगृहीकों गये, वहांपर वैभारगिरि वगेरा पांचपहाडोके मंदिरोंकी जियारत किइ, और वहाँके शिलालेखोकी नकल अपनी नोटबुकमें दर्जकिइ. राजगृहीसे सुबे. विहार-सुबेविहारसे कुंडलपुर-और--कुंडलपुरसें पावापुरी-जोतीर्थकर महावीरस्वामीकी निर्वाणभूमि है, कमलसरोवरमें जहां निहायत उमदा मंदिर और-तीर्थंकर महावीरस्वामीकी चरणपादुका तख्तनशीनहै. जियारतकिड, तवारिख पावापुरी और शिकार
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