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सवाने-उमरी.
( ६७ ) शांतिविजयजी इन जैनी जहोरीयोंके गुरुहै, आप चारमहिनेसे कलकत्तेमें है, यहां गुरुजीका निवास वडतल्लाष्ट्रीट (५८) नंबरवाले मकानमें हुवाहै, आपके आनेसे श्वेतांवरलोगोमे उनके धर्मका वडा उत्साह हुवा है.
इसतरह कइ अखबारोमें महाराजकी तारीफ छपीहुइ है, बडे बडे शहरोमें जहाँजहां महाराज तशरीफ लेजाते है उनका बयान अखबारोमें छपताहै,
करौज महाराजने इसबातपर व्याख्यानदियाकि-जिसजिस बातका तीर्थकर-गणधरोने धर्मशास्त्रमें हुकम फरमाया है, सबब आनपडनेसे मनाभी फरमाइ है, और जिसवातकी मनाफरमाइ है उसका हुकमभी फरमायाहै एसा जानो, मगर वो-सबब-इरादे धर्मके होनाचाहिये. जैसेकि-चौमासेकेदिनोमें जैनमुनिकों एकजगह रहना फरमाया, मगर सबब वीमारीका आनपडे तो-चौमासेमेंभी विहार करजाना हुकम है, जैनमुनिकों वनास्पति खाना-या-स्पर्श करना मनाहै, मगर जब किसी-कुवेमें-या-खड्डेमें गिरपडे तो-उस हाल में किसी दस्तकीशाखा-या-लता-वेलडीकों पकडकर बहार आजाना हुकमहै, अगर किसीमुनिकों-सांप काटजाय तो उसके जहरको रदकरनेकेलिये नींवके पत्ते चचाजानाभी हुकमहै, जैनमुनिकों क्रोधकरना-या-किसीकों सख्त जवान कहना हुकम नही, मगर जबकोइ धर्मकों हानि पहुचाताहो-या-कुतर्क करके धर्मका खंडन करताहो-उसहालतमें-उसको सख्तजवान कहनाभी हुकमहै, क्योंकि-इरादा धर्मकाहै, जैनमुनिकों भिक्षामांगकर सीकमपरवरीश करना शास्त्रहुकमहै, मगर जब खुद बीमारपडजाय तो कोइ गृहस्थ आहारपानी मकांनपर लादेवे-तोभी-लेलेना हुकमहै. क्योंकि उस
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