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सवाने - उमरी.
( ६९ ) शहर रतलामगये, रतलाम के श्रावक - टेशनपर - हाजिरथे, उनोने दो - रौजकेलिये- ठहरनेकी अर्जकि, महाराज वहांपर ( २ ) रौज ठहरे, और व्याख्यान धर्मशास्त्रका वाजकिया, तीसरेरोज रतलामसे रवानाहोकर शहरमंदसौर आये, और संवत् ( १९५९ ) की वारीश वहां पर गुजारी. पेस्तर भी महाराज यहां वारीश गुजार चुके है, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां देतेथे, किताब - रिसाला - मजहब इंढिये - यहांपर बनाइ. जोकि - जैन श्वेतांवर श्रावकान-मंदसोरनेवास्ते फायदे खास आमके छपवाकर जाहिर किइहै. दुसरी किताब - गुलदस्ता - जैन - और - इशाइभी यहांपर महाराजने तयारकर, संगीत कलाका इल्म इनदिनों भी हासिल करते रहे. सूर्यप्रज्ञप्ति - और - पिंडनियुक्तिशास्त्र - यहांपर महाराजने वाचे और वारीश खतम करके तीर्थ ही पार्श्वनाथकी जियारतकों गये, जो करीब ( ५ ) कोसके फासलेपरवाके है. यात्रीयोंका वहां मेला - हुवाथा, और जलसा कियागयाथा, महाराज वहांपर दोरौज ठहरे, और वीर्थकी जियारत करके वापिस - मंदसोर - आये, --
[ संवत् १९६० का - चौमामा - शहर आकोला, ]
बादवारीशके मंदसोरसे रवाना होकर निमच होतेहुवे चितो - डगढकी जियारतकों गये, पहाडपर जाकर पुराने मंदिरोंकी जिarrass, और वहांकी तवारिख अपनी नोटबुक में दर्जकर, चितोडगढ कंपिलपुरकी जियारतकेलिये रवानाहुवे, रास्ते में अ जमेर - जयपुर-बांदीकुड़-भरतपुर- अचनेरा-मथुरा-और-हाथरस टेशनपर होतेहुवे कायमगंजटेशन उतरे, और वहांसे खुश्की रास्ते कंपीलपुर - जो- तीनकोसके फासलेपर वाकेहै गये, तीर्थकर विमकनाथजी की जन्मभूमी यही शहर है, जियारत कर, और वहांके
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