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हिदायत-उल-आम.
तके लिये जब रितुधर्म - अयाम आवे-तो- तीनरौज अलगरहे, दर्शनपूजन-न-करे, चौथेरौज पाकहोकर दूरसेंदर्शनकरे. अगर ठह रनेकेलिये फुरसतहो - तो - सातवेरोज पूजनभी होसकेगी पूजनके लिये छोटीछोटी रकाबियां - और - जापकरनेको मालाभीशाथरखो, केशर - कपूर - धूप - चावल - वर्क - - चांदीसौनेके और वढीयाइतरभी देवपूजनके लिये शाथ लेलो. अगरतुम किताव पढना जानते होतो- स्तोत्रपाठ - या - स्तवनावली वगेरा - या - जैन श्वेतांबर तीर्थगाइड- शाथमें- लेलो. तीर्थों में जाकर गप्पकरनेकानाम जियारतनही है. तीर्थों में ऐसे स्तोत्र औरस्तवनपढना चाहिये जिससे दिलपर देवगुरु धर्मकेलिये पदवढे, खेलतमाशेकी किताब - या - शतरंज - गंजीफा वगेराशाथरखना को जरुरतनहीं, तमाम उमर खेलतमासों में गुजरी, तीर्थ में जाकर देवदर्शन में और पूजनमें मशगुलर हो. खैलकोंबंदकरो, और तीर्थभ्रमिमेवेठकर ध्यानकरो. - अगर- ज्ञानचौसर खेलनाजानतेहोतो- बेशक! खैलो, क्योंकि उसमें कोइवात पापकर्म केवढाने की नही, बल्कि ! धर्मपाबंदी कीबात है, जितने दिन तीर्थयात्रामें लगे- सामायिक - प्रतिक्रमण हमेशां करतेरहो. अगरउक्तकार्य-न-वनशके, तो - नमस्कार मंत्र की एकदो - माला- जरूरफेरो, - गप्पकरना ठीकनही, कइवसों में जियारतकों चले और फिर उसमें भी वहीहालरखोगे तुमारीजियारत फिजहुलहोगी, देखिये ! पेस्तरके श्रावक पैदलचल कर - जियारतकरते थे, रास्ते में ब्रह्मचर्य पाळतेथे, दिनमें एकही फे खानाखातेथे. सचित्तचीजें नहीं खाते थे, - औरजमीनपरसोते थे, आज ERE रैलसवारीके इतनाभी बनजायतो गनीमत है,
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कुछदो अन्नी - चोअन्नी - और - पैसेवगेरा भीशाथ रखलो, जो तीर्थयात्रामें- अंधे - लुळे-लंगडे-और-रोटीयोके मोहताजोकों खैरात केलिये कामदेगा, तीर्थंकरदेवभी वार्षिकदान अनुकंपा से देते है, अनु
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