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सवाने - उमरी.
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अब किसहालमें पडी है, जिनजिन होजोमें गुलाब-और-वेदमुश्कभराजाताथा - उनमें अब काइजम रही है. जहां मखमल - और कमख्वाबके फर्शपर मोतियोंकी झालरके शामियानेखडे कियेजाते थेवहां अवको झाडुभी नहीदेता, जिनकी अर्दली में सेंकडों सवार दोडतेथे - और - जो तमाम हिंदुस्थानमें नहीसमाते थे - थोडीसीजमीनमें सोयेपडे हैं, होनहारके सामने किसीका जोरनही चलता, उदय अस्त सबकों लगा है, हुकमहोदा - अमल्दारी और खजाना छोड़कर इस दुनियाफानीसराय से एकरौज जरुर विदाहोना है, पुरानी चीजोंकों देखकर आदमीकों एकतरहका असर होता है, और यहभी खयालपैदा होता है कि - सारस्तु धर्म है. जींदगीका कोइभरुसा नहीं. जहांanaने धर्मकरनाचाहिये. -
( संवत् १९४८ का - चौमासा - शहर लशकरगवालियर, )
बादariah देहली से रवाना होकर कुतुब- मेहरोली- गुडगांव होतेहुवे कस्बे फरुखनगर गये और करीब ( ४ ) महिने वहांउ - हरे, यहां पर महाराजने अपनेलिये ( टाइम-टेबल) कायम किया, ( यानी ) शुभहसे लेकर शामतक- और - शामसेलेकर शुभहतक किसकिसवख्त क्याक्या कामकरना - उसका वख्त - मुकररकिया, शुभहके ( ६ ) बजेसे ( ७ ) बजेतक प्रतिलेखना - और - स्थंडिलभूमि जाना, (७) बजेसें ( ८ ) बजेतक योगाभ्यास चितवन करना (८) बजेतक व्याख्यानसभा में बेठकर धर्मोपदेश देना, (९|| ) जेसे (१०) बजेतक विश्राम, (१०) वजेसें ( १२ ) तक आहारपानी लेना, ( १२ ) बजेसे ( ४ ) बजेतक - आयेगये गृहस्थोhare धर्मचर्चा के बारेमें बहेसकरना - ग्रंथवनाना-लिखना-पढनाया - ज्ञानचर्चा करना, ( ४ ) बजेसे ( ५ ) बजेतक प्रतिलेखना
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