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सवान-उमरी. (४७) अगर कोई सवाल करेकि-मूर्तिपूजा-अछी है-तो-साधुमहाराज पूजा क्यों नहींकरते ? (जवाब.) साधुमहाराज जिनप्रतिमाके दर्शनकों जाते है, तीर्थयात्राकों जाते है और भावपूजा करते है, जैनशास्त्रोमें साधु-साधवी-श्रावक-श्राविका-पुस्तक-प्रतिमा-और मंदिर-ये-सातक्षेत्र बयान फरमाये. अगर मंदिर-मूर्तिमानना जैनमें मनाहोता तो सातक्षेत्र क्यौं फरमाते ? मूर्तिपूजामें पूजकका इरादा पाक होनेसे भावहिंसा नही. ओर विनाभावहिंसाके पाप नहीं. बल्कि ! अशुभकर्मोकी निर्जरा और पुन्यानुबंधि पुन्यप्राप्तिका हेतुहै. अगर कोई सवालकरेकि-मूर्तिपूजा करनेवाले पथ्थरकों पूजते है ( जवाब. ) पथ्थर नहीं पूजते, बल्कि ! वितरागदेवका आकार देखकर उसमें वीतरागभावकी यादीलाकर पूजते है, और इबादतकरते हैकि-हे ! वीतराग-अरिहंत-सर्वज्ञ-परमात्मा-निरंजन निराकार इस हमारीइबादतसे हमारे कर्म-दरहोकर हमकों मुक्ति मिले, अगर पथ्थर पूजतेहोतेतो ऐसा कहतकि-हे ! पथ्थर !! तुं बडा अछाहै, फलानी खानमेसें निकलाहुवाहै. और तुं ! दश रुपयेगजके मोलकाहै, मगर नहीं, पूजकपुरुषतो मूर्तिकेजरीये वितरागहीकी पूजा करताहै. अगर कोई सवालकरोकि-मूर्तिकी जो इबादत किइजाती है-क्या-वह सुनती है, ? ( जवाब. ) जिस देवकी मूर्तिहै-वह-वेशक ! अपने ज्ञानमें जानते हैकि-फलांशख्श इबादत कररहाहै. अगर कोइ कहे, हम-मानसीमूर्तिको मानते है, पथ्थरकी मूर्तिको नहीं मानते, ( जवाव.) फिर मानसीक ज्ञानकोही मानलो, कागज स्याहीकेबनेहुवे पुस्तककों क्यों मानतेहो, ? अगर कोई सवालकरे मूर्ति पथ्थरकी है-उसको पांव लगादेवे तो क्याहर्ज है ? ( जवाब.) पुस्तक कागज स्याहीके है-उसकों पांव लगानेमें क्या हर्ज है, ? अगर कहोगे हर्ज है, तो इसीतरह मूर्तिके
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