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* जिनसहस्रनाम टीका - १५ * अचिन्त्यात्मा अचिन्त्यस्वरूप इत्यर्थः = हे भगवन् ! आपका आत्मा हमारे मन वचन के अगोचर है, अविषय है अत: आपके आत्मा का स्वरूप हम छद्मस्थ ज्ञानियों के लिए अतयं है, इसलिए आप अचिन्त्यात्मा हो।
भव्यबन्धुः = भव्यानां रत्नत्रययोग्याना बन्धुरुपकारक: स भव्यबंधुः = हे जिनेन्द्र ! आप रत्नत्रय योग्य ऐसे जीवों को जिनको जिनागम भव्य कहता है, उनके बन्धु हितकर्ता हैं, उपकारक हैं।
अबन्धनः = न बंधनं कर्मबंधनं यस्य स अबंधनः अथवा न बंधनानि मोह ज्ञानावरण दर्शनावरणान्तराय कर्माणि यस्य सः अबंधनः = हे प्रभो ! आप कर्मबन्धनों से रहित हैं, अतः अबन्धन हैं, कर्मबन्ध रहित हैं, अथवा मोह, ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय ये कर्म आपके नहीं हैं अत: आप अबन्धन
युगादिपुरुषो ब्रह्मा पञ्चब्रह्ममयः शिवः। परः परतरः सूक्ष्मः परमेष्ठी सनातनः॥७॥
युगादिपुरुषः = युगेषु कृतयुगेषु आदिपुरुषः प्रथमपुरुष: इति युगादि पुरुषः - हे जिनेन्द्र ! आप कृतयुग में आदिपुरुष प्रथमपुरुष हो गये। ब्रह्मा = "तृहिवृहिवृद्धौ" - बृहन्ति वृद्धिं गच्छन्ति केवलज्ञानादयो गुणा यस्मिन् स ब्रह्मा । तथा च उक्तं द्रव्यसंग्रहटीकायां ब्रह्मदेवेन परब्रह्मसंज्ञनिजशुद्धात्मभावना-समुत्पन्न सुखामृत तृप्तस्य सत; उर्चशीरंभातिलोत्तमादि देवकन्याभिरपि यस्य ब्रह्मचर्यव्रतं न खंडितं स ब्रह्मा भण्यते = केवलज्ञान, अनंतसुख, दर्शनादिक गुण आप में वृद्धि को प्राप्त हुए हैं, अत: ब्रह्मा हो। द्रव्यसंग्रहटीका में ब्रह्मदेव जी ने लिखा है परमब्रह्मा जिसका नाम है, तथा जो शुद्धात्मा की भावना से उत्पन्न हुए सुखामृत से तृप्त है, उर्वशी, रम्भा, तिलोत्तमादिक, देवकन्याओं से भी जिसका ब्रह्मचर्य खण्डित नहीं हुआ है उसे ब्रह्मा कहते हैं। ___पंचब्रह्ममयः = पंचभिर्ब्रह्मभिर्मतिश्रुतावधिमन:पर्ययकेवलज्ञानैर्वित्तो निष्पन्न: स पंचब्रह्ममयः ज्ञानचतुष्टयं केवल-ज्ञानान्तर्गर्भितत्वात्, या पंचभिर्ब्रह्मभिः अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसवसाधुभिर्निर्वृत्तः पंचब्रह्ममयः पंचपरमेष्ठिनां गुणैरुपेतत्वात् = पाँच ब्रह्मों से मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवलज्ञान