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* जिनसहस्रनाम टीका - ९८ * सिद्धिसंकल्पः सिद्धोऽहमित्यर्थः । उक्तं च-सिद्धो वाप्यादिके (व्यासा) देवयोनौ निष्पन्नमुक्तयोः नित्ये प्रसिद्धे = सिद्ध की तरह प्रभु का मोक्षप्राप्ति का संकल्प, चिंता, चिन्तन, अभिप्राय पूर्ण हुआ उसे सिद्धसंकल्प कहते हैं और भी कहा है- विस्तार, देवयोनि, निष्पन्न, मुक्ति, नित्य, प्रसिद्ध आदि अनेक अर्थ हैं अत: प्रसिद्ध वा सिद्ध पूर्ण हो गये हैं सारे संकल्प जिके थे सिद्धसंकल्, कहलाते हैं।
सिद्धात्मा = सिद्धो हस्तप्राप्तिरात्मा जीवो यस्य स सिद्धात्मा, अथवा सिद्धस्त्रिभुवनविख्यात पृथिव्यादिभूत जनित्वादि-मिथ्यादृष्टि तत्त्वरहितं आत्मा जीव स्वरूपं यस्य स सिद्धात्मा - सिद्ध हो गयी, या प्राप्त हो गयी है आत्मा या शुद्ध स्वरूप जिनको वे सिद्धात्मा हुए हैं। अथवा त्रिभुवन में प्रभु का आत्मा सिद्ध प्रख्यात हआ है वे सिद्धात्मा हैं। पृथ्वी, वायु, अग्नि और पानी इन चार पदार्थों से आत्मा की उत्पत्ति होती है ऐसा कोई मिथ्यादृष्टि मानते हैं पर उनका कहना गलत है क्योंकि ज्ञान, दर्शन गुण को चेतना कहते हैं और यह गुण पृथिव्यादिकों में नहीं है, आत्मा में ही है अत: सिद्ध ही चेतनागुण पूर्ण हैं। या सिद्ध याने मुक्ति को प्राप्त हुई है आत्मा जिनकी ऐसे जिन सिद्धात्मा हैं। वा आपकी आत्मा सिद्ध पद को प्राप्त हो गई है अत: आप सिद्धात्मा हैं।
सिद्धसाधनः = सिद्ध नित्यं साधनं सैन्यं यस्य स सिद्धसाधनः। उक्तमनेकार्थे - साधनं सिद्धसैनयोः।
उपायेऽनुगमेमेंद्रे निवृत्तौ कारके वधे। दापने मृतसंस्कारे प्रमाणे गमने धने ॥
जिनके अनन्तज्ञानादि गुणरूपी सैन्य सिद्ध हुआ है अत: सिद्धसाधन हैं। अनेकार्थ कोश में उपाय, अनुगम, इन्द्र, निवृत्ति, कारक, वध, दापन, मृतसंस्कार, प्रमाण, गमन और धन आदि अनेक अर्थ में साधन शब्द का प्रयोग होता है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये मोक्ष के साधन हैं, उपाय हैं, अनुगम हैं, वा स्वात्मोपलब्धि मुक्ति ही आत्मा का साधन है, धन (ज्ञानधन), सिद्ध हो गये सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप मोक्ष के साधन जिसके वह सिद्धसाधन कहलाता है।