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* जिनसहस्रनाम टीका - २५० * समान जिसके परिणाम होते हैं वह कृष्ण लेश्या है अर्थात् तीव्र क्रोधी, वैरको नहीं छोड़ने वाला, लड़ाकू, धर्म दया से रहित दुष्ट, किसी के वश में नहीं होने से स्वच्छन्द प्रवृत्ति करने वाला, हेयोपादेय विचार से रहित, पंचेन्द्रिय विषयों में आसक्त, मानी, मायावी, आलसी और भीरु स्वभावी मानव कृष्ण लेश्या वाला होता है।
आलस्य, मूर्खता, कार्यानिष्ठा, भीरुता, अतिविषयाभिलाषा, अति गृद्धि, माया, तृष्णा, अतिमान, वंचना, अनृत भाषण, चपलता, अतिलोभ आदि भाव नीललेश्या के लक्षण हैं।
दूसरों पर रोष करना, दूसरों की निन्दा और अपनी प्रशंसा करना, शोक भय, ईर्ष्या, पर-अविश्वास, स्तुति किये जाने पर संतुष्ट होकर धन प्रदान करना अपनी हानिवृद्धि का ज्ञान न होना, कर्तव्य-अकर्तव्य का भान नहीं होना आदि कापोत लेश्या के लक्षण हैं, ये तीन अशुभ लेश्या हैं।
दृढ मित्रता, दयालुता, सत्यवादिता, दानशीलत्व, स्वकार्यपटुता, सर्वधर्मसमदर्शित्व आदि परिणाम तेजो (पीत) लेश्या के चिह्न हैं।
सत्य वचन बोलना, क्षमा, सात्विकदान, पाण्डित्य, देव-शास्त्र-गुरु की भक्ति में रुचि पद्यलेश्या वाले के चिह्न हैं।
निर्वैर, वीतरागता, शत्रु के दोषों पर भी दृष्टि नहीं देना, किसी की भी निन्दा नहीं करना, पापकार्यों से उदासीनता, श्रेयोमार्ग में रुचि आदि भाव शुक्ल स्लेश्या के द्योतक हैं।
ये छहों लेश्या जिनके नहीं हैं वह अलेश्य कहलाता है अथवा जिसके 'अ' ईषत् लेश्या है वह अलेश्य कहलाता है। अलेश्य होने से भगवन् आपको नमस्कार हो । शुद्ध लेश्या के अंश का स्पर्श करने वाले भगवन् आपको नमस्कार हो। 'शुक्ललेश्यांशकस्पृशे' पाठ भी है। शुक्ल लेश्या को ही शुद्ध लेश्या कहते हैं। भव्य और अभव्य अवस्था रहित हे भगवन् आपको नमस्कार हो। संवर
और निर्जरा के द्वारा सर्व कर्मों का नाश कर आनन्द, ज्ञान, ऐश्वर्य, वीर्य, परम सूक्ष्मता आदि युक्त आत्यंतिकी अवस्था मोक्ष है, उस मोक्ष अवस्था के धारी विमोक्षिणे आपके लिए नमस्कार हो॥२९ ।।