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* जिनसहस्रनाम टीका - १६८ * सर्वत्रगः= सर्वत्र गच्छत्तीति सर्वत्रगः ‘डो संज्ञायामपि' = सर्व त्रैलोक्य में प्रभु संचार करते हैं अर्थात् अपने केवलज्ञान से सर्व जगत् को तथा उसमें स्थित सर्व पदार्थों को जानते हैं।
सदाभावी = सदा सर्वकालं भविष्यतीति सदाभावी, 'भूस्थाभ्यां णिनिः' - सदा भविष्य काल में भी अपने ज्ञानादि गुणों की परिणति धारण करने वाले प्रभु हैं। अत: वे सदाभावी नाम को धारण करते हैं।
त्रिकालविषयार्थदृक् = त्रिकालविषयार्थान् त्रिकालगोचरपदार्थान् पश्यतीति त्रिकालविषयार्थदृक् = भूतकाल, वर्तमानकाल तथा भविष्यकाल में गुणपर्यायों में परिणत होने वाले अनन्तानन्त पदार्थों को प्रभु देखते हैं। अत: वे त्रिकालविषयार्थदृक् हैं।
शङ्करः शंवदो दान्तो दमी क्षान्तिपरायणः ।
अधिप: परमानन्दः परात्मज्ञः परात्परः ॥११॥ त्रिजगद्बल्लभोऽभ्यर्च्यस्त्रिजगन्मङ्गलोदयः। त्रिजगत्पतिपूज्यांघ्रिस्त्रिलोकाग्रशिखामणिः ॥१२॥
अर्थ : शंकर, शंवद, दान्त, दमी, क्षान्ति-परायण, अधिप, परमानन्द, परात्मज्ञ, परात्पर, त्रिजगत्वल्लभ, अभ्यर्च्य, त्रिजगन्मंगलोदय, त्रिजगत्पतिपूज्यांघ्रि, त्रिलोकाग्रशिखामणि, १५ नाम प्रभु के सार्थक हैं। ___टीका - शंकरः - शं परमानन्दलक्षणं सुखं करोतीति शंकरः, शं पूर्वेभ्यः संज्ञायामच् प्रत्ययः = शं परमानन्द लक्षण रूप सुख को जिन्होंने अपनी आत्मा में उत्पन्न किया है तथा योगिजनों को भी सुख की प्राप्ति के लिए कारण हैं ऐसे प्रभु यथार्थ शंकर हैं।
शंवदः = वद् व्यक्तायां वाचि, वदः शंपूर्वः शं सुखं वदतीति शवदः शं पूर्वेभ्य: संज्ञायां अच् = शं परमानन्द सुख की प्राप्ति के कारणों का भगवंत ने भव्यों के लिए कथन किया है। अतः वे शंवद हैं। संज्ञा अर्थ में अच् प्रत्यय हुआ है।
दान्त:= दम्यते स्म दान्त: दांत सांत पूर्ण: हस्तस्य ष्ट च्छन्न प्रज्ञप्ताश्चेनता