________________
* जिनसहस्रनाम टीका - १७२ * दृढव्रत:= दृढं निश्चलं व्रतं दीक्षा यस्य, प्रतिज्ञा वा यस्य दृढव्रत:= आदि भगवान की दीक्षा एवं व्रतपालनप्रतिज्ञा निश्चल है अत: वे दृढव्रत हैं।
सर्वलोकातिगः= सर्वलोकान् त्रैलोक्यस्थितप्राणिगणान् अतिगच्छति अतिक्रम्य गच्छतीति सर्वलोकातिगः सर्वपुरोगामीत्यर्थः= तीन लोक में स्थित जितने प्राणिसमूह हैं उनको अपने सर्वज्ञत्वादि गुणों से उल्लंघ कर आगे जाने वाले आप हैं।
पूज्यः = पूजायां नियुक्तः पूज्य:= भगवान आदिनाथ सर्वज्ञत्वादि गुणों से सर्व लोगों के द्वारा पूज्य हैं।
सर्वलोकैकसारथि:= सर्वलोकस्य एक एव नेता इत्यर्थः= भगवंत ने तीनों लोकों में स्थित प्राणिसमूह को धर्मकार्य में प्रवृत्त करने में अद्वितीय नेता के पद को धारण किया। अत: आप मुख्य नेता हैं।
पुराण:= पुरे शरीरे परमौदारिककाये अमिति जीवति मुक्तिं यावद् गच्छति वा स पुराण:- पुर में अर्थात् परमौदारिक शरीर में मोक्ष-प्राप्ति के समय तक भगवान का जीवन रहता है। अतः वे पुराण हैं।
___ पुरुष:= पृ पालनपूरणयोः पृणाति पूरयति लोकानामुदरं ध्यानेनेति पुरुषः पृणाते क्रुषः, अथवा पुरुणि महति इंद्रादीनां पूजिते पदे शेते तिष्ठतीति पुरुष:= अपने शुक्लध्यान से प्रभु त्रैलोक्य के उदर को भर देते हैं, व्याप्त करते हैं अतः पुरुष हैं। अथवा पुरु महान् इन्द्रादि उनसे पूज्य ऐसे पद में प्रभु सदा रहते हैं। इसलिए वे पुरुष हैं।
पूर्वः= पूर्वतीति पूर्वः सर्वेषामाद्य इत्यर्थः, आदि जिनेन्द्र सर्व तीर्थंकरों में प्रथम हैं, आद्य हैं अत: पूर्व हैं।
कृतपूर्वागविस्तरः= कृतो विहितः पूर्वांगानां पूर्व, पढुंग पर्व, नयुतागं, नयुतं, कुमुदं, कुमुदांग, पद्माङ्गं पा, नलिनाङ्गं नलिनं, कमलांग, कमलं, तुटिटांगं तुटिटं, अटटांग अटट, अममांग अममं, हा हा हू हू अंग हाहाहूहू, विद्युल्लतांग, विद्युल्लता, लतागं लता, महालतांगं महालता, शीर्षप्रकंपितं, हस्तप्रहेलिका, अचलात्मकं, तेषां विस्तारोंऽक गणना येन स कृतपूर्वांगविस्तरः, अथवा कृतो