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* जिनसहस्रनाम टीका - २१७ * अर्थ : जगतां पत्ये चरणों में झुकने को नमस्कार कहते हैं। चौरासी लाख योनियों में उत्पन्न प्राणियों को जगत् (संसार) कहते हैं अथवा - ऊर्ध्व लोक, अधोलोक और मध्यलोक रूप तीन लोक को जगत् कहते हैं- इन तीन लोक में स्थित सारे प्राणियों के स्वामी (पालक, रक्षक) भगवन आपके लिए मेरा नमस्कार है।
मध्य, स्वर्ग और पाताल लोक में उत्पन्न लक्ष्मी के स्वामी आपके लिए मेरा नमस्कार हो। पाताल लोक की लक्ष्मी धरणेन्द्र की है, मृत्यु लोक की लक्ष्मी वक्रवर्ती की है और स्वर्ग लोक की सम्पदा इन्द्र की है, तीन लोक की सम्पदा के स्वामी आपको नमस्कार करते हैं अतः आप लक्ष्मी के स्वामी हैं, अथवा आप अंतरंग अनन्त चतुष्टय रूप लक्ष्मी और समवसरणादि बहिरंग लक्ष्मी के स्वामी हैं। वि. आप शेड हैं अतः सम्सोधन में है विदांवर तथा आप 'वंदना' परम तार्किक जनों में 'वर' श्रेष्ठ हैं अतः हे वदतांवर ! आपको हम बारम्बार नमस्कार करते हैं ।।२।।
कामशत्रुहणं' देवमामनंति मनीषिणः। त्वामानुमः सुरेण मौलि सग्मालाभ्यर्थित क्रमम् ॥३॥
टीका - हे स्वामिन् ! मनीषिणो विद्वान्सः त्वां भवंत कामशत्रुहणं कामारिघ्नं देवमाम ति कथयन्ति। पुनः हे देव ! त्वां वयं ग्रन्थकर्तारः आनुम: स्तुमः । कथंभूतं त्वाम् ? सुरेण्मौलिस्रग्मालाभ्यर्चितक्रमं सुराणां देवानां ईट् स्वामी सुरेट्, तस्य तेषां वा मौलयः मुकुटानि, तेषां सजा पुष्पाणां मालास्ताभि-रभ्यर्चितौ क्रमी पादौ यस्य सः सुरेण्मौलिनग्मालाभ्यर्चित-क्रमस्तं सुरेण्मौलिनग्मालाभ्यर्चितक्रमम् ।३॥
अर्थ : हे स्वामिन् ! मनीषी (विद्वान्लोग) आपको कामशत्रु का नाशक देव मानते हैं। अतः देवों के स्वामी इन्द्र के मुकुट में लगी हुई माला के द्वारा अर्चित (पूजित) चरण वाले भगवन् ! तुझको हमलोग (ग्रन्थकर्ता) नमस्कार करते हैं, आपकी स्तुति करते हैं ॥३॥ १. कामारिहनम् - काम रूपी अरि को हुन् याने मारने वाले। २. त्वामानुम: सुरेण्मौलिभायाला, त्वामानुमः सुरेमौलिनग्माला, पाठ भी है।