Book Title: Jinsahastranamstotram
Author(s): Jinsenacharya, Pramila Jain
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan

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Page 260
________________ * जिनसहस्रनाम टीका - २४४ * गुप्तयज्ञ९, मित्रयज्ञ", स्वयंभू५५, भगदेव५२, भगदत्त३, भगफल्गु५४, गुप्तफल्गु५५, मित्रफल्गु'६, प्रजापति५५, सर्वसंघ८, वरुण५९, धनपालक, मघवान६१, तेजोराशी६२, महावीर६३, महारथ६४, विशालाक्ष६५, महाबल६६. शुचिशाल६५, वज्र८, वज्रसार ६९, चन्द्रचूल", जय १, महारस७२, कच्छ, महाकच्छ७४, नमि५, विनमि७६, बल", अतिबल, भद्रबल, नंदी, महीभागी १, नन्दिमित्र २, कामदेव, अनुपम ४ । इस प्रकार नाभिनन्दन के ८४ गणधर रूपी योगीन्द्र चरण-कमलों की सेवा करते हैं। तथा चौरासी हजार मुनीन्द्र थे। अजितनाथ सिंहसेनादि नब्बे गणधर और एक लाख मुनीन्द्र के द्वारा सेवित संभवनाथ के चरणों की चारुषेणादि १०५ गणधर और दो लाख मुनीन्द्र सेवा करते थे। अभिनन्दन भगवान के चरणों की वज्रनाभि आदि १०३ गणधर और तीन लाख मुनि सेवा करते थे। सुमतिनाथ भगवान के चरणों की चामरसेनादि ११६ गणधर तथा तीन लाख बीस हजार मुनि सेवा करते थे। पद्मप्रभु भगवान वज्रसारादि ११० गणधर और तीन लाख तीस हजार मुनीन्द्रों के द्वारा सेवित थे। सुपार्श्व चामरबलादि पिच्यानवे गणधर और तीन लाख मुनीन्द्र के द्वारा सेवित थे। ___ चन्द्रप्रभु दंतादि तिरानवे गणधर और तीन लाख मुनीन्द्रों से युक्त थे। पुष्पदन्त विदर्भ आदि अठ्यासी (८८) गणधर और तीन लाख मुनीन्द्र सहित थे। शीतलनाथ भगवान के अनगार आदि इक्याशी गणधर और एक लाख मुनिराज थे। श्रेयांसनाथ के चरणसेवक कुंथ्वादि सत्ततर गणधर और चौरासी हजार मुनिराज थे। वासुपूज्य भगवान के सुधर्म (मेरु) आदि छ्यासठ गणधर और ७२ हजार मुनीश्वर थे। विमलनाथ भगवान के मन्दरादि पचपन. गणधर और ६८ हजार मुनिराज चरण सेवक थे।

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