Book Title: Jinsahastranamstotram
Author(s): Jinsenacharya, Pramila Jain
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan

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Page 261
________________ * जिनसहस्रनाम टीका - २४५ : अनन्तनाथ के जय आदि पचास गणधर और छ्यासठ हजार मुनिवर चरणसेवक थे। धर्मनाथ भगवान के अरिष्ठादि तैयालीस गणधर और चौसठ हजार मुनिराज चरण कमल की सेवा करते थे। शांतिनाथ भगवान के चक्रायुध आदि छत्तीस हजार गणधर और बासठ हजार मुनीन्द्र चरणों की सेवा करते थे। कुन्थुनाथ के स्वयंभू आदि पैंतीस गणधर और साठ हजार मुनीन्द्र चरणाराधक थे। अरनाथ के कन्थ आदि तीस गणधर और पचास हजार मुनिराज थे। मल्लिनाथ भगवान के चरणसेवक विशाखादि २८ गणधर और चालीस हजार मुनिराज थे। मुनिसुव्रतनाथ के मल्लि आदि अठारह गणधर और तीस हजार मुनिराज नमिनाथ जिनराज के समवसरण में सोमादि सत्तरह गणधर और २० हजार मुनिराज थे। नेमिनाथ जिनराज के वरदत्तादि ११ गणधर और १६ हजार मुनीश्वर थे। पार्श्वनाथ के स्वयंभू आदि १० गणधर और १६ हजार मुनीश्वर थे। महावीर भगवान के गौतम (इन्द्रभूति), अग्निभूति, वायुभूति, शुचिदत्त, सुधर्म, माण्डव्य, मौर्यपुत्र, अकम्पन, अचल, मेदार्य, प्रभास (जम्बू) ११ गणधर थे और १४ हजार मुनीश्वर थे। ये सभी गणधर सात ऋद्धियों के धारक थे। इन ऋषभसेनादि योगीन्द्रों के द्वारा वंदित दोनों चरणकमल जिनके हैं, अत: वे परम योगीन्द्र वंदितांघ्रिद्वय कहलाते हैं। उनको मेरा नमस्कार हो। नमः परमविज्ञान नमः परमसंयमः। नमः परमदृग्दृष्टपरमार्थाय तायिने ॥२८॥ टीका - नमः नमस्कारोऽस्तु हे परमविज्ञान विशिष्टं ज्ञान विज्ञानं परम

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