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* जिनसहस्रनाम टीका - २१५ * ततः सदिदं पुण्यार्थी पुमान् पठतु पुण्यधीः।
पौरुहूतीं श्रियं प्राप्तुं परमामभिलाषुकः॥९॥
टीका : ततः कारणात् सत् विद्यमानं इदं प्रत्यक्षीभूतं पुण्यार्थी पुण्यमर्थः प्रयोजनमस्यास्तीति पुण्यार्थी पुमान् नर: पठतु पुण्यधीर्यस्येति पुण्यधी: पौरुहूती इंद्रसंबंधिनी पिसं लक्ष्मी सावं एरमामुल्कृष्ट अभिलाषुकः अभिलषतीत्येवंशीलः पुमान् अभिलाषुकः इति सुष्ठम् ॥९॥
इसके पाठ करने से जिसकी बुद्धि पवित्र है तथा जो पुण्य को चाहता है ऐसा व्यक्ति इन्द्र की सर्वोत्कृष्ट लक्ष्मी की प्राप्ति की इच्छा से इस स्तुति का पाठ सदा पढ़े ॥९॥
इस प्रकार सूरिश्रीमदमरकीर्तिविरचित जिनसहस्रनाम दीका में ग्यारहवाँ अध्याय (उपसंहार) पूर्ण हुआ।