Book Title: Jinsahastranamstotram
Author(s): Jinsenacharya, Pramila Jain
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan

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Page 251
________________ * जिनसहस्रनाम टीका - २३५ * मिथ्यासंकल्पनिरासो लिर्विचिकितार। भनाईद-टाटतत्वेषु मोहरहितत्वममूढदृष्टिता। उत्तमक्षमादिभिरात्मनो धर्मवृद्धिकरणं। चतुर्विधसंघदोषझपनं चोपबृंहणम्, उपगूहुनापरनामधेयम् । क्रोध मान माया लोभादिषु धर्म-विध्वंसकारणेषु विद्यमानेष्वपि धर्मादप्रच्यवनं स्थितिकरणम्। जिनशासने सदानुरागित्वं वात्सल्यम् । सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रतपोभिरात्मप्रकाशन जिनशासनोद्योतकरणं च प्रभावना । एतेऽष्टौ सम्यक्त्वगुणा: तद् विपरीता अष्टौ दोषाः। अर्थ : जिनके कलंक क्षीण हो गया है, किसी प्रकार का अपवाद नहीं है वे क्षीणकलंक कहलाते हैं। जैसे नारायण ने ग्वाले की पुत्री को सेवन किया था। ईश्वर ने संतनुकी स्त्री को सेवन किया था। इन्द्र ने गौतम की भार्या को भोगा था । सो ही कहा है - क्या स्वर्ग की देवांगना अकुवलयनेत्रा नहीं है जिससे इन्द्र ने तपस्विनी अहल्या के साथ रमण किया था। हृदय रूपी घर के काम रूपी अग्नि के द्वारा जलने पर कौन पंडित उचित-अनुचित को समझता है अर्थात् कामी पुरुष को हेयोपादेय का ज्ञान नहीं रहता। इसीलिए चन्द्रमा ने बृहस्पति की भार्या के साथ संभोग किया था। अन्य मतावलम्बियों के पुराणों में लिखा है कि- चन्द्रमा ने गुरु की पत्नी के साथ, इन्द्र ने गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या के साथ और ईश्वर ने संतनुकी भार्या के साथ कामभोग किया था। इस प्रकार हरि, हर, ब्रह्मा आदि सर्व देव कलंक (अपवाद) सहित हैं। हे नाभिनन्दन ! एक आप ही वीतराग, क्षीणकलंक (निष्कलंक) हो अत: आपके लिए नमस्कार हो । कलंकमुक्त आपको नमस्कार हे क्षीणबन्ध ! आपको नमस्कार हो । बंध रहित होने से हे क्षीणबंध ! आपको नमस्कार हो। स्थिति, अनुभाग, प्रदेश और प्रकृति बन्ध के भेद से बंध चार प्रकार का है। ये चार प्रकार के बंध जिसके क्षीण हो गये हैं, नष्ट हो गये हैं, उसको क्षीणबंध कहते हैं, सम्बोधन में हे क्षीणबन्ध ! तुम्हें (तुम्हारे लिए) नमस्कार हो। क्षीण हो गया मोह वा अज्ञान जिसका उसको क्षीणमोह कहते हैं। उस क्षीणमोही को नमस्कार हो।

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