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* जिनसहभ्रनाभ टोका - २५४ * के दश भव के नाम-महाबल राजा, ललितागदेव, वज्रजंघ राजा, भोगभूमिज, प्रथम स्वर्ग में देव, सुविधि, स्वर्ग के इन्द्र, वज्रनाभि, सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र और (१०) वृषभनाथ हुए ।।।।
युष्मन्नामावली दृब्धविलसत्स्तोत्रमालया। भवन्तं वरिवस्यामः प्रसीदानुगृहाण नः ।।७।।
टीका : युष्माकं नामावलिः श्रेणि: तया दृब्धा रचिता गुंफिता विलसंती शोभमाना स्तोत्रमाला स्तवनमाला युष्मन्नामावली दृब्धविलसत्स्तोत्रमाला तया भवन्तं नाभिमरुदेवीतनयं वरिवस्यामः सेवामहे आराधयाम: प्रसीद प्रसन्नोभव, अनुगृहाण कृपां विधेहि नः अस्मान् प्रति ॥७॥
हे ईश, आपकी नामावली से जिसकी रचना की है तथा जो मन को हरण करती है, ऐसी स्तोत्रमाला से हम आपकी सेवा कर रहे हैं अर्थात् नाभिराय
और मरुदेवी के पुत्र की हम आराधना कर रहे हैं। हे प्रभो ! आप हम पर प्रसन्न होकर अनुग्रह करें ||७||
इदं स्तोत्रमनुस्मृत्य पूतो भवति भाक्तिकः । य: संपाठं पठत्येतत्स स्यात् कल्याणभाजनम् ॥८॥
टीका : इदं स्तोत्रं इदं स्तवनं सहस्रनामलक्षणं अनुस्मृत्य अनुध्यायन् चिंतयित्वा पूतः पवित्रो भवति स्यात् भाक्तिक: पुण्यात्मा यः पुमान् संपादं समीचीनं पाठं यथा भवति तथा पठति उच्चारयति एतत्स्तोत्रं स पुमान् अध्येता, स्यात् भवेत् कल्याणभाजनं कल्याणानां गर्भावतारजन्माभिषेकनिष्क्रमणज्ञान निर्वाणानां भाजनं स्थानं आविष्टलिंगत्वान्नपुंसकत्वं ॥८॥
इस सहस्रनाम स्तोत्र का स्मरण कर भक्तजन पवित्र हो जाते हैं। जो भक्त इसका समीचीन रीति से पठन करता है अर्थात् शान्तचित्त से शुद्धोच्चारण पूर्वक इस स्तोत्र को पढ़ता है वह गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्ष ऐसे पाँच कल्याणों का स्थान होता है।॥८॥