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* जिनसहस्रनाम टीका - १९३ 2 तेजोमयः= तेजसो विकारोऽवयवो वा तेजोमयः ‘प्रकृतविकारेऽवयवे वा भक्ष्याच्छादनयोश्चमयट्':- स्वयं भगवान् केवलज्ञान रूपी प्रकाश से युक्त होने से तेजोमय हैं।
अमितज्योोते:= अमितं अमर्यादीभूत ज्योतिः केवलं यस्येति अमितज्योतिः = अमर्याद ज्योति केवल ज्योति है जिसकी उसे अमितज्योति कहते
ज्योतिमूर्ति:- ज्योतिषां तेजसा मूर्तिराकारो यस्येति ज्योतिमूर्तिः= तेज वान मूर्ति आकार है जिनका वे ज्योतिमूर्ति कहे जाते हैं।
तमोपहः= तमो अंधकार अपहतीति तमोपहः, अपक्लेशतमसोः ड प्रत्ययः= अज्ञान रूपी अन्धकार के नाशक होने से तमोपह है अथवा - मानसिक क्लेशरूपी अन्धकार के नाशक हैं।
जगच्चूडामणिर्दीप्त: शंवान्विघ्नविनायकः । कलिघ्न: कर्मशत्रुघ्नो लोकालोकप्रकाशकः ।।३।। अनिद्रालुरतंद्रालुर्जागरूक: प्रमामयः । लक्ष्मीपतिर्जगज्ज्योतिर्धर्मराजः प्रजाहितः।।४।।
अर्थ : जगञ्धूड़ामणि, दीप्त, शंवान्, विघ्नविनायक, कलिघ्न, कर्मशत्रुघ्न, लोकालोकप्रकाशक, अनिद्रालु, अतद्रालु, जागरूक, प्रमामय, लक्ष्मीपति, जगज्योति, धर्मराज, प्रजाहित, ये पन्द्रह नाम प्रभु के सार्थक नाम हैं।
टीका : जगच्चूडामणिः गच्छतीत्येवंशीलं जगत् पंचमोपधायाधुटि वा गुणोदीर्घ: यममनतनगमा क्वौ पंचमोलोप: अत्धातोस्तोन्तः पानुबंधे जगज्जातं जगतस्त्रैलोक्यस्य चूडामणिः शिरोरत्नं स जगच्चूडामणिः । 'चूडामणिं च विद्वांसो वदन्ति शिरसि स्थितम्' इति हलायुधे :
अर्थ : परिणमनशील को जगत् कहते हैं अत: जगत् का अर्थ तीन लोक है। आप तीन लोक में शिरोमणि हैं, सबके शिरपर - लोक के अग्रभाग में स्थित हैं अत: आप जगच्चूड़ामणि हैं। ऐसा विद्वान् कहते हैं।