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*जिनसहननाम टीका - १७५ * तीन हजार सातसौ तहत्तर उच्छ्वास में एक समय कम को भिन्न अन्तर्मुहूर्त कहते हैं। आवली से एक समय अधिक को जघन्य अन्तर्मुहूर्त कहते हैं और मध्यम असंख्यात भेद हैं।
तीस मुहूर्त (२४ घण्टे) अहोरात्रि है।
१५ अहोरात्रि का एक पक्ष होता है। दो पक्ष का एक मास होता है। दो मास की एक ऋतु है। तीन ऋतु का एक अयन होता है। दो अयन का एक संवत्सर है। पाँच वर्ष का एक युग होता है। इसी प्रकार आगे की संख्या साझा वाहिए.
लक्ष वर्ष, पूर्वांग, पूर्व आदि।
इस प्रकार पूर्वादि अंगों की संख्या का विस्तार पूर्वक कथन किया है अत: इनका कृतपूर्वांगविस्तर नाम है।
अथवा - जिन्होंने आचारादि ११ अंग का तथा उत्पाद पूर्वादि १४ पूर्वो का विस्तारपूर्वक कथन किया है। अत: इनका नाम कृतपूर्वांगविस्तर है।
अथवा उत्पाद, अग्रायणी, आदि चौदह पूर्व तथा आचारांग, सूत्रकृताङ्गादि बारह अंगों का विस्तार से प्ररूपण आदि भगवन्त ने किया है अर्थात् सर्व शास्त्रों के कर्ता भगवान हैं।
आदिदेवः = आदिः सर्वभूतानां देवो दानादिगुणयुक्तः, आदिश्चासौ देवश्च आदिदेवः, यद् वा आदौ जगत्सृष्टेः प्रागपि स्वेन ज्योतिषा दीप्तिमान् आदिदेव:- सर्व प्राणियों के जो प्रथम देव हैं, जो दानादि गुणों से युक्त हैं, अर्थात् ऋषभनाथ आदिदेव हैं। या कर्मभूमि की उत्पत्ति होने के पूर्व अपनी ज्ञानज्योति से वे दीप्तिमान थे।
पुराणाध:= पुराणं महापुराणं तस्य आदौ भव आद्यः पुराणाद्य;महापुराण के आरम्भ में आदिभगवान हुए हैं।
पुरुदेवः= पुरुर्महान् इन्द्रादीनामाराध्यो देवः पुरुदेवः अथवा पुरवः प्रचुराः असंख्या देवा यस्य स पुरुदेवः असंख्यातदेवसेवितः इत्यर्थः अथवा पुरो स्वर्गस्य देवः पुरुदेवः देवदेव इत्यर्थ := भगवान पुरु-बड़े जो इन्द्रादि देव उनके आराध्य