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* जिनसहस्रनाम टीका - १७.. कलातीत:= कलां शरीरमतीत: शरीरबंधरहित: इत्यर्थः= शरीर को कला कहते हैं, भगवान शरीर से अतीत थे, रहित थे। अतः वे कलातीत नाम से सर्वथा युक्त थे, वे शरीर के बन्ध से रहित थे।
कलिलघ्नः= कलिलं पाप हंतीति कलिलघ्नः- पाप को कलिल कहते हैं, उसका आपने विनाश किया । ज्ञानावरणादिक कर्म का नाम पाप है। उसका प्रभु ने विनाश किया, इसलिए कलिलघ्न नाम सार्थक हुआ।
कलाधरः= कलां द्वासप्ततिकलाः धरतीति कलाधर := प्रभु बहत्तर कलाओं के धारक थे और उन्होंने अपने भरतादिक सौ पुत्रों को उन कलाओं का ज्ञान दिया था अतः वे कलाधर नाम से शोभायमान थे।
देवदेवो जगन्नाथो जगबन्धुर्जगद्विभुः । जगद्धितैषी लोकज्ञः सर्वगो जगदग्रजः ॥५॥ चराचरगुरुगोप्यो गूढात्मा गूढगोचरः । सद्योजातः प्रकाशात्मा ज्वलज्ज्वलनसप्रभः ॥६॥
अर्थ : देवदेव, जगन्नाथ, जगबन्धु, जगद्विभु, जगद्धितैषी, लोकज्ञ, सर्वग, जगदग्रज, घराचरगुरु, गोप्य, गूढात्मा, गूदगोचर, सद्योजात, प्रकाशात्मा, ज्वलज्ज्वलनसप्रभ, ये पन्द्रह नाम प्रभु के सार्थक हैं। ___टीका : देवदेवः = देवानामिन्द्रादीनामाराध्यो देवः देवदेव: अथवा देवानां राज्ञां देवः राजा देवदेवः राजाधिराजः इत्यर्थः अथवा देवानां मेघकुमाराणां देव; परमाराध्यो देवदेवः= देवों के अर्थात् इन्द्रादिकों के प्रभु आराध्य देव थे, अथवा देवों के राजाओं के भी देव थे, राजा थे अतः राजाधिराज थे या देवों के मेघकुमार देवों के प्रभु देव थे आराध्य थे। अत: देवदेव थे। .
जगन्नाथ= जगतां त्रिलोकानां नाथ: जगन्नाथ:- भगवान अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोकों के महास्वामी हैं।
जगबन्धुः= जगतां बन्धुः बांधवः जगबंधुः = प्रभु त्रिलोक के हितकर्ता बांधव मित्र बन्धु हैं।
जगद्धितैषी = जगतां प्राणिनां हितमिच्छतीति जगद्धितैषी = जगत् के प्राणियों का हित हो ऐसी इच्छा प्रभु रखते हैं।