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जिनसहस्रनाम टीका १८४
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सुधौतकलधौत श्री: = सुधौतं निर्मलं कलधौतं रूप्यं सुधौतकलधौतं तस्य श्री : शोभा यस्येति सुधौतकलधौतश्रीः 'रजतं कलधौतं च रूप्यं तारं च कथ्यते' हलायुधनाममालायां = निर्मल चांदी के समान है श्री (शोभा) जिसकी अतः सुधौतकलधौतश्री भगवान का नाम है।
हलायुध नाममाला में "रजत, कलधौत, रूप्य, तार ये निर्मल चांदी के नाम हैं। अतः चांदी की निर्भता के उज्ज्वल होने से भगवान
सुधौतकलधौती हैं।
प्रदीप्तः = दीपा दीप्तौ दीपः प्रपूर्वः प्रदीप्यतेस्मः प्रदीप्तः 'क्तः नडी इश्वीदनुबंधनेटामपतनिष्कुषोर्नेट् ।' दीप्तवानित्यर्थः = 'दीपा' धातु दीप्ति अर्थ में है । 'प्र' उपसर्ग पूर्वक 'दीपा' धातु से 'प्रदीप' शब्द बना है। इसका अर्थ है। भगवान बहुत कान्ति वाले हैं।
हाटकद्युति: = हाटकं महारजतं तद्वत् द्युतिर्यस्येति स हाटकद्युतिः । स्वर्णरूपं द्रव्यमित्यादिकं परमेश्वरस्यांशमिति भावार्थ:- हाटक नाम सुवर्ण का है अतः तप्तायमान सुवर्ण के समान कान्ति वाले हैं।
शिष्टेष्टः पुष्टिदः पुष्टः स्पष्टः स्पष्टाक्षरः क्षमः | शत्रुघ्नोऽप्रतिघोऽमोघः प्रशास्ता शासिता स्वभूः ॥ ११ ॥ शांतिनिष्ठो मुनिज्येष्ठः शिवताति: शिवप्रदः । शान्तिद: शांतिकृच्छ्रांति: कांतिमान् कामितप्रदः ।। १२ ।।
अर्थ : शिष्टेष्ट, पुष्टिद, पुष्ट, स्पष्ट, स्पष्टाक्षर, क्षम, शत्रुघ्न, अप्रतिघ, अमोघ, प्रशास्ता, शासिता, स्वभू, शांतिनिष्ठ, मुनिज्येष्ठ, शिवताति, शिवप्रद, शान्तिद, शान्तिकृत, शान्ति, कान्तिमान्, कामितप्रद ये २१ नाम प्रभु के सार्थक हैं जो इस प्रकार हैं।
टीका - शिष्टेष्टः = शिष्टानामिन्द्रचक्रवर्त्तिधरणेन्द्राणामिष्टः अभीष्टः वल्लभः शिष्टेष्टः = शिष्ट अर्थात् सज्जन ऐसे जो इन्द्र, चक्रवर्त्ती, धरणेन्द्रादिक महाभव्य आदि पर प्रभु की भव्य प्रीति है वे उनको वल्लभ मानते हैं। अतः भगवान शिष्टेष्ट हैं।