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* जिनसहननाम दीका - १९० में नग्नाट, दिग्वासा, क्षपण, श्रमण, जीवक, जैन, आजीव, मलधारी और निर्ग्रन्थ ये दिगम्बर जैन साधु के नाम हैं।
वातरसन:= वात एव रसना कटिसूत्रं यस्येति वातरसनः ।
“कलापः सप्तकी कांची मेखला रसना तथा । कटिसूत्रं सा रसना" इति हलायो - वायु ही है रसना गने कटिमूत्र जिनका ऐसे प्रभु को वातरसन कहते हैं। कलाप, सप्तकी, कांची, मेखला, रसना और कटिसूत्र ये कमर में बाँधने वाले आभूषणों के नाम हैं।
निर्ग्रन्थेश:= ग्रन्थात् चतुर्विंशतिपरिग्रहात् निष्क्रान्तो निर्ग्रन्थ: तस्य ईश: स्वामी निर्ग्रन्थेशः । चौबीस परिग्रहों से रहित ऐसे मुनियों के ईश होने से उन्हें निर्ग्रन्थेश कहते हैं।
दिगम्बर:= दिशोऽम्बराणि वस्त्राणि यस्य स दिगम्बर: नग्नः इत्यर्थः । उक्तं च निरुक्ते -
यो हताश: प्रशांताशस्तमाशाम्बरमुचिरे। य: सर्वसंगसन्त्यक्तः स नग्नः परिकीर्तितः ।।
दिशा ही है अम्बर याने वस्त्र जिसके वह दिगम्बर अर्थात् नग्न ऐसा अर्थ होता है। कहा भी है- जिसने धन-धान्य, स्त्री-पुरुषादिकों की प्राप्ति होवे ऐसी आशायें नष्ट की हैं उसे प्रशान्ताश कहते हैं। तथा जिसने सर्व परिग्रहों का त्याग कर दिया है उसे आशाम्बर कहते हैं। दिशारूपी वस्त्रधारी कहते हैं। अर्थात् ऐसे महात्मा को नग्न कहते हैं।
निष्किंचनः= निर्गतं निष्क्रांत किंचनं धनमस्येति निष्किंचन: निर्ग्रन्थाचार्य: इत्यर्थः = किंचन - धन यह सर्व परिग्रह की प्राप्ति का मूल कारण है। उसका जिसने त्याग किया है उस महात्मा को निष्किञ्चन कहते हैं अर्थात् जो निम्रन्थाचार्य हुए हैं ऐसे प्रभु को निष्किञ्चन कहते हैं।
निराशंस:= आशंसनं आशंसा शंसि प्रत्ययादः । निर्गता आशंसा आकांक्षा यस्येति निराशंसः निराश इत्यर्थः। हलायुधनाममालायाम् -
"इच्छा वाञ्छा स्पृहा कांक्षा कामनाशा रुचिस्तथा। आशंसा चेति