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* जिनसहस्रनाम टीका - १८०* सद्योजातः श्रुतिं बिभ्रत् स्वर्गावतरणोच्युतः। त्वमद्य वामतां थत्से कामनीयकमुद्बहन् ।
प्रभु की स्वर्ग से प्रच्युति होते ही माता के गर्भ में प्रवेश हो जाता है। अतः वे सद्यः तत्कालजात:, माता के गर्भ में प्रविष्ट होते हैं ऐसा कहना योग्य है। इस विषय में ऐसा कहा है- हे प्रभो ! जब आपने स्वर्ग से चयकर माता के गर्भ में प्रवेश किया तब इन्द्र ने सारी बात जान ली और यह सर्व विदित हो गई तब आपको सद्योजात नाम प्राप्त हुआ और आप अतिशय उत्तम सौन्दर्य को धारण करने लगे इसलिए आपने वामदेव नाम को भी धारण किया।
प्रकाशात्मा = प्रकाशनं प्रकाशः प्रकाश उद्योतः आत्मा यस्य स प्रकाशात्मा = जिनकी आत्मा प्रकाश स्वरूप तेजस्वी हुई, उद्योत करने वाली हुई ऐसे प्रभु प्रकाशात्मा कहे गये।
ज्वलज्ज्वलनसप्रभः= ज्वलतीति ज्वलन् स चासो ज्वलन: वैश्वानरः ज्वलत् ज्वलनः ज्वलनस्य समाना प्रभा कान्तिर्यस्य स ज्वलज्ज्वलनसप्रभ:आपकी प्रभा, कांति ज्वालायुक्त अग्नि के समान होने से, हे प्रभो, आप ज्वलज्ज्व लनसप्रभ इस नाम के धारक हुए हैं।
आदित्यवर्णो भर्माभः सुप्रभः कनकप्रभः । सुवर्णवर्णो रुक्माभ: सूर्यकोटिसमप्रभः ।।७।। तपनीयनिभस्तुंगो बालार्काभोऽनलप्रभः। संध्याभ्रबभ्रुखैमाभस्तप्तचामीकरच्छविः॥८॥
अर्थ : आदित्यवर्ण, भर्माभ, सुप्रभ, कनकप्रभ, सुवर्णवर्ण, रुक्माभ, सूर्यकोटिसमप्रभ, तपनीयनिभ, तुंग, बालार्काभ, अनलप्रभ, संध्या-बभ्रु, हेमाभ, तप्तचामीकरच्छवि, ये १४ नाम प्रभु के सार्थक नाम हैं जो इस प्रकार हैं।
टीका = आदित्यवर्णः = आदित्यवद्वर्णो यस्य स आदित्यवर्णः दिवाकरसहस्रसमप्रभः इत्यर्थः- प्रभु की शरीरकान्ति जिसको भामण्डल कहते हैं, वह सहस्रसूर्यों के सदृश है इसलिए प्रभु आदित्यवर्ण कहे जाते हैं।