________________
* जिन्सहस्रनाम टीका- १२६ *
अतः वे जिनराज हर हैं। अथवा, भगवान भक्तों को ह- हर्ष - अनन्त सुख देते हैं अथवा, हर्ष को उत्पन्न करते हैं अतः वे हर हैं । अथवा, भगवान राज्यावस्था में हं सहस्रसरवाले, मध्यभाग में पदक को (लॉकेट) धारण करने वाले मुक्ताफलादिकों का हार देते हैं इसलिए वे हर है। अथवा उपर्युक्त हार को धारण करते हैं इसलिए हर है । अथवा, हिंसा को नष्ट करने में रः अग्नि के समान हैं, अश्वमेधादिक यज्ञों का भगवान निषेध करते हैं अतः वे हर हैं।
असंख्येयः = संख्यानं संख्या, संख्यामतीतः असंख्येयः अगणित इत्यर्थः • संख्या का जिन्होंने उल्लंघन किया है ऐसे प्रभु जिनराज असंख्येय हैं उनमें असंख्यगुण हैं।
=
अप्रमेयात्मा = न प्रमेयः अप्रमेय: अगणितः आत्मा यस्येति सोऽप्रमेयात्मा एकसिद्धशरीरेऽनंता: सिद्धास्तिष्ठतीत्यर्थः = जिसमें अगणित आत्माओं का सिद्धों का निवास है, एक सिद्ध में अनंत सिद्ध रहते हैं।
सर्व
शमात्मा शमः सर्वकर्मक्षयः उपशमः आत्मा यस्येति शमात्मा = कर्मों के क्षय को उपशम शम कहते हैं । वह आत्म ऐसे जिनराज शमात्मा हैं ।
स्वरूप जिनका है।
-
-
प्रशमाकर : = प्रकृष्टः शमः प्रशम: उत्तमक्षमा, तस्याकरः खानि: प्रशमाकरः, 'आकरो निकरे खानौ' इत्यभिधानात् उत्कृष्ट शम को प्रशम कहते हैं अर्थात् उत्तम क्षमा को प्रशम कहते हैं और श्री जिनेन्द्र प्रभु क्षमा की खानि, आकर, निकर हैं । इसलिए प्रशमाकर कहे जाते हैं ।
सर्वयोगीश्वरोऽचिन्त्यः श्रुतात्मा विष्टरश्रवाः । दान्तात्मा दमतीर्थेशो योगात्मा ज्ञानसर्वगः ॥ ९ ॥
अर्थ : सर्वयोगीश्वर, अचिन्त्य, श्रुतात्मा, विष्टरश्रवा, दान्तात्मा, दमतीर्थेश, योगात्मा, ज्ञानसर्वग ये आठ नाम प्रभु के हैं।
-
टीका सर्वयोगीश्वरः = सर्वयोगिनां गणधरदेवादीनामीश्वर: स्वामी सर्व योगीश्वर:- संपूर्ण गणधरादि योगिजनों के प्रभु स्वामी हैं इसलिए सर्वयोगीश्वर हैं।
रा