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* जिनसहस्रनाम टीका - १४६ सुनयः = कथंचित् स्याद् शब्द से उपलक्षित नित्यादि धर्म का प्रतिपादन करने वाले नय को सुनय कहते हैं। अर्थात् अनेकान्ताश्रित सुनय कहलाता है। और वे जिनके होते हैं वे प्रभु सुनय कहलाते हैं। ये सुनय के सात प्रकार हैं- स्यान्नित्य, स्यादनित्य, स्यान्नित्यानित्य, स्यादवाच्य, स्यान्नित्यअवाच्य, स्यादनित्य-अवाच्य, स्यान्नित्यानित्यश्चावक्तव्यः ।
चतुराननः = चत्वारि आननानि यस्येति चतुराननः = चारमुख भगवान के होते हैं अतः उनको चतुरानन कहते हैं।
श्रीनिवासः = श्रीणां शोभानां निवासस्थानं श्रीनिवास:= भगवान सर्व शोभाओं का निवासस्थान होने से श्रीनिवास हैं।
चतुर्वक्त्रः = चत्वारि वक्त्राणि यस्येति चतुर्वक्त्र:= चार वक्त्र-मुख जिनके हैं वे जिनराज चतुर्वक्त्र कहे गये हैं।
चतुरास्यः = चत्वारि आस्यानि यस्येति स चतुरास्य:= चार आस्य याने मुख जिनके हैं।
चतुर्मुखः = चत्वारि मुखानि यस्य स चतुर्मुखः, घातिसंघातने सति भगवतस्तादृशं परमौदारिक-शरीर - नैर्मल्यं भवति यथा दिव्यं प्रतिदिशं मुखं दृश्यते अयमतिशयः स्वामिनो भवति = चारमुख जिनके हैं उन प्रभु को चतुर्मुख कहते हैं। घातिकर्मों का नाश होने पर भगवंत के परमौदारिक शरीर में अतिशय निर्मलता उत्पन्न होती है जिससे प्रत्येक दिशा में भगवान का मुख सम्मुख दिखता है, ऐसा अतिशय भगवंत का होता है। अतः भगवान चतुर्मुख कहे जाते हैं। अथवा प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग तथा द्रव्यानुयोग ऐसे अर्थ रूप चार अनुयोग भगवान के मुख में हैं। अत: उनको चतुर्मुख कहते हैं। अथवा धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष लक्षण रूप चार पदार्थ जिनके मुख में हैं। या प्रत्यक्ष, परोक्ष, आगम, अनुमान, ये चार प्रमाण जिनके मुख में हैं वे चतुर्मुख हैं या सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक्तप ये चार मुख-कर्मक्षय करने के द्वार जिनके हैं, वे भगवान् चतुर्मुख हैं।
सत्यात्मा सत्यविज्ञान: सत्यवाक् सत्यशासनः । सत्याशी: सत्यसन्धान: सत्य: सत्यपरायणः॥८॥