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* जिनसहस्रनाम टीका - १४७ * अर्थ : सत्यात्मा, सत्यविज्ञान, सत्यवाक्, सत्यशासन, सत्याशी, सत्यसन्धान, सत्य, सत्यपरायण, ये आठ नाम प्रभु के हैं।
टीका : सत्यात्मा : मत्ा भागहीने मोट: सन्धः ला सत्सु नियोज्य: सत्यः सद्भ्यो हितो वा सत्यः, सत्य: सफल आत्मा यस्येति सत्यात्मा = सज्जन ऐसे भव्य जीवों में जो योग्य उसे सत्य कहते हैं। अथवा सज्जनों में जो नियोजन करने में योग्य अथवा सज्जनों का हित करने वाला उसे सत्य कहते हैं। सत्य से सफल है आत्मा जिनका ऐसे भगवान सत्यात्मा हैं।
सत्यविज्ञानः = सत्यं सफलं विज्ञानं यस्य स सत्यविज्ञान:- जिनका विज्ञान सत्य सफल है ऐसे जिनेश्वर सत्यविज्ञान कहे जाते हैं।
सत्यवाक् = सत्या सफला वाक् यस्य स सत्यवाक् = जिनकी वाणी सत्य है सफल है ऐसे जिनेश्वर सत्यवाक् कहे जाते हैं।
सत्यशासनः = सत्यं सफलं शासनं मत यस्येति स सत्यशासनः= जिनका शासन अर्थात् मत सत्य है। उन जिनदेव को सत्यशासन कहते हैं।
सत्याशी: = सत्या सफला आशी अक्षयं दानमस्तु इत्यादिरूपा आशीराशीर्वादो यस्य स सत्याशी: ये केचिन्मुनयस्तेषामाशीर्दातुर्लाभान्तरायवशात् कदाचित् न फलति जन्मान्तरे तु फलत्येव भगवतस्त्वाशीरिहलोके परलोके च फलत्येव तेन भगवान् सत्याशी: उच्यते = सत्य-सफल, आशीर्वाद जिनका वे प्रभु सत्याशी हैं। हे भव्य ! तेरा दान अक्षय होवे, ऐसा तीर्थंकर का दाता को दिया हुआ आशीर्वाद सफल होता है अतः जिनदेव सत्याशी हैं। कई मुनियों का आशीर्वाद दाता में लाभान्तराय कर्म का उदय होने से इस भव में कदाचित् सफल नहीं होता, परन्तु परभव में, उनका आशीर्वाद सफल हो जाता है। परन्तु जिनदेव का आशीर्वाद तो इहलोक में भी तथा परलोक में भी दोनों में सफल होता है। इसलिए भगवान सत्याशी हैं।
सत्यसन्धानः = सत्यप्रतिज्ञ इत्यर्थः= भगवान जिनेश्वर की प्रतिज्ञा कभी असत्य नहीं होती है।
सत्यः = सति साधुः सत्य:- जिनदेव सज्जनों के लिए सत्य ही रहते हैं, सफल ही रहते हैं।