________________
* जिनसहस्रनाम टीका - १३४ * वन्द्यः = वदि अभिवादनस्तुत्योः वंदितो देवेन्द्रादिभिर्वंद्यः= जिनराज देवेन्द्रादिकों के द्वारा अभिनन्दन योग्य, स्तुति योग्य तथा वन्द्य हैं इसलिए वन्द्य . कहे जाते हैं।
अनिन्छः = णिदि कुत्सायां निंदतीति निन्द्यः अष्टादशदोषरहितत्वादित्यर्थः क्षुधा, तृषादिक अठारह दोषों से रहित होने से जिनराज निन्दनीय नहीं हैं अर्थात् स्तुति योग्य हैं। अनिन्द्य हैं।
अभिनंदनः = अभि समन्तात् नंदयति निजरूपाद्यतिशयेन प्रजानामानंदमुत्पादयतीति अभिनंदनः, अथवा न विद्यते भयं तत्र तानि अभीनी,
रहितीपरोस पुंशक समिति निर्भयानि शांतप्रदेशानि अशोक सप्तपर्ण चंपक चूतानां वनानि समवसरणे यस्य स अभिनंदनः = जिनेश्वर अपने निर्विकार स्वरूप आदिक छियालीस गुणों से प्रजा को सर्व प्रकार से आनन्द उत्पन्न करते हैं अत; अभिनन्दन हैं। अथवा जिनेश्वर के समवसरण में निर्भय तथा शान्त प्रदेशों से युक्त सुन्दर सप्तपर्ण, अशोक, चम्पक तथा आम्र आदिक चार वन हैं। इसलिए वे अभिनन्दन हैं। अथवा भगवान का स्वर-वाणी निर्भयता को देने वाली है।
कामहा = काम कंदर्प हंतीति कामहा = जिनदेव ने काम - मदन का नाश किया है अतः वे कामहा हैं।
कामदः = कामं ददाति इति कामदः= इच्छित पदार्थ भक्तों को देते हैं। इसलिए प्रभु कामद हैं।
काम्यः = काम्ये मनोभीष्टवस्तुनि साधुः कुशलो दक्ष: काम्यः = मन जिसको चाहता है ऐसे पदार्थ देने में जो तत्पर हैं, साधु हैं, कुशल हैं, दक्ष हैं अतः काम्य कहलाते हैं।
कामधेनुः = कामस्य वाञ्छितस्य धेनुरिव धेनुर्नवप्रसूता गौ: कामधेनुः । भाक्तिकानां नित्यमेव मनोरथपूरका इत्यर्थ । कामो वांछा तत्र वांछितप्रदा फलदा वा धेनुः कामधेनु:- इच्छित वस्तु को देने वाली नवप्रसूता गाय को काम-धेनु कहते हैं। प्रभु भक्तों के निरंतर मनोरथ पूर्ण करते हैं अतः कामधेनु हैं। 'काम'