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* जिनसहस्रनाम टीका - १३८ * टीका - अजितः = न केनापि कामक्रोधादिना शत्रुणा जितः अजितः = जो काम-क्रोधादि शत्रुओं के द्वारा नहीं जीते गये हैं अत: वे अजित कहे जाते हैं।
जितकामारिः = जित: परिपातितः कामारिः कंदर्पशत्रु: येनासौ जितकामारि:- अर्थ - जीत लिया है, नष्ट कर दिया है काम रूपी शत्रु को जिन्होंने वे 'जितकामारि' कहलाते हैं। भगवान् ने काम मन्मथ को पराजित कर दिया है अतः वे भगवान् कामारि हैं।
अमितः = मा, माने माङ् माने शब्दे च मेङ् प्रतिदाने मे संध्य. | मा मीयते स्म मितः कृ प्र यतिस्यति मां स्था त्य गुणो, न मित: अमितः अमितः, अगणितः इत्यर्थः- ‘मा या माङ्' मान (माप) शब्द प्रतिदान आदि अनेक अर्थों में है। जो वचनों के द्वारा, तुला आदि के द्वारा मापा जाता है वह मित कहलाता है। जो किसी के द्वारा मापे नहीं जाते हैं, छद्मस्थों के द्वारा जाने नहीं जाते हैं, गिने नहीं जाते हैं अत: अमित, अगणित कहलाते हैं। प्रभु के गुण भी वचनों के द्वारा कहे नहीं जाते, गिने नहीं जाते अत: भगवान अगणित, अमित कहलाते
__ अमितशासनः = अमितं अगणितं शासनं मतं यस्येति अमितशासन:प्रभु के मत का विवेचन करने में गणधरों की वाणी भी थकती है अतः वे अमितशासन कहे जाते हैं।
जितक्रोधः = जित: पराजितः क्रोधः कोपो येनेति जितक्रोधः= क्रोध को पराजित करके क्रोधजित हैं जो।
जितामित्रः = जितं अमित्रं शत्रुर्येनेति जितामित्र; सर्वप्रियः इत्यर्थः= जीत लिया है शत्रु को जिन्होंने, वे सर्वप्रिय बन गये और जितामित्र कहलाये।
जितक्लेशः = जित: क्लेशः उत्तापो येनेति जितक्लेश:, जिसने क्लेश को जीत लिया है वह जितक्लेश है।
__ जितान्तकः = जितः अन्तको यमो येनेति जितान्तक:= अन्तक याने यम और यम को जीतने से प्रभु जितान्तक हैं।