________________
* जिनसहस्रनाम टीका - १३९० जिनेन्द्रः परमानन्दो मुनीन्द्रो दुन्दुभिस्वनः । महेन्द्रवन्धो योगीन्द्रो यतीन्द्रो नाभिनन्दनः॥३॥
अर्थ : जिनेन्द्र, परमानन्द, मुनीन्द्र, दुन्दुभिस्वन, महेन्द्रवन्ध, योगीन्द्र, यतीन्द्र और नाभिनन्दन ये आठ नाम प्रभु के हैं।
जिनेन्द्रः = कर्माराती जितवन्त: जिनास्तेषामिन्द्रः स जिनेन्द्रः- जिन्होंने कर्मशत्रुओं को जीता है, पराजित किया है ऐसे गणधरादिकों के प्रभु स्वामी जिनेन्द्र हैं।
परमानन्दः = परम उत्कृष्ट आनंदः सौख्यं यस्येति परमानन्द: = उत्कृष्ट, आनन्द सौख्य स्वरूप को धारण करने से वे परमानन्द हैं।
मुनीन्द्रः = मुनीनां प्रस्थकशानिनामिन्द्रः स मुनीन्द्रः = मुने, अवधि, मनःपर्यय तथा केवलज्ञान धारण करने वाले गणधरादिकों के, प्रत्यक्ष ज्ञानधारियों के भगवान इन्द्र हैं, स्वामी हैं। अतः वे मुनीन्द्र हैं।
दुन्दुभिस्वतः = दुन्दुभिर्जयपटहस्तद्वत्स्वनः शब्दो यस्य स दुन्दुभिस्वन:जय नगारे को दुन्दुभि कहते हैं। उसके समान गंभीरध्वनि प्रभु के मुख से निकली। अतः वे दुन्दुभिस्वन हैं।
महेन्द्रधन्द्यः = महेंद्रैर्देवेन्द्रर्वद्यः स्तुतः महेन्द्रवंद्यः= महेन्द्रों से देवेन्द्रों से प्रभु स्तुत हुए हैं। अत: वे महेन्द्रवन्ध हैं।
योगीन्द्रः = योगिनां ध्यानिनामिन्द्रः स्वामी स योगीन्द्र := वे योगियों के, ध्यान करने वाले मुनियों के इन्द्र हैं, नाथ हैं अत: योगीन्द्र हैं।
यतीन्द्रः = यतीनां निष्कषायाणामिन्द्रः प्रधानः यतीन्द्र:= कषाय रहित मुनियों के स्वामी होने से यतीन्द्र है।
नाभिनन्दनः = नाभेर्नंदन: सूनुर्नाभिनन्दनः= नाभिराज के सूनु याने पुत्र हैं। अतः वे नाभिनन्दन हैं।
नाभेयो नाभिजो जातसुव्रतो मनुरुत्तमः। अभेद्योऽनत्ययोऽनाश्वानधिकोधि गुरुः सुगी:॥४॥