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* जिनसहस्रनाम टीका - १२४ * महाध्यानपतिर्ध्यातमहाधर्मो महाव्रतः। महाकारिहात्मज्ञो महादेवो महेशिता॥७॥
अर्थ : महाध्यानपति, ध्यातमहाधर्म, महाव्रत, महाकर्मारिहा, आत्मज्ञ, महादेव, महेशिता ये सात नाम जिनेन्द्र प्रभु के हैं।
टीका - महाध्यानपतिः = महाध्यानस्य परम शुक्लध्यानस्य पतिः महाध्यानपतिः = प्रभु जिनदेव महाध्यान याने पृथक्त्व वितर्क, एकत्ववितर्क आदिक परम शुक्ल ध्यान के स्वामी हैं।
ध्यातमहाधर्मः = ध्यातश्चिंतितः संभालितः पूर्व भवायत्तो महाधर्म: श्रावक कुलोत्पन्न लक्षणो येनासौ ध्यातमहाधर्म; = जिनदेव ने पूर्वभव में श्रावक कुलोत्पन्न महाधर्म का ध्यान, चिन्तन किया था अत: वे ध्यातमहाधर्म कहे जाते
महाव्रत: = हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्रतं महच्च तव्रतं च महाव्रतं, महाव्रतं यस्येति महाव्रत: = हिंसा, असत्य, चोरी करना, मैथुनसेवन,
और सम्पूर्ण बाह्याभ्यंतर परिग्रहों पर ममत्व ऐसे पंच महापापों का यावज्जीवन पूर्ण त्याग करना महाव्रत है। इनके धारक प्रभु ही हैं।
महाकारिहा = महच्च कर्म महाकर्म महाकर्मैवारि: शत्रुर्महाकर्मारिः महाकारिं हतवान् महाकर्मारिहा, 'क्विप् ब्रह्मभ्रूणवृत्रेषु' = ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय तथा अन्तराय ये चार घातिकर्म महाशत्रु हैं। इनको प्रभु जिनेश्वर ने समूल नष्ट किया । अत: उन्हें महाकर्मारिहा कहते हैं।
आत्मज्ञः = ज्ञा अवबोधने आत्मानं पुमांस जानातीति आत्मज्ञः ‘प्रेदाज्ञः' = ज्ञात याने जानलिया अपने आत्मस्वरूप को पूर्णतया जिन्होंने ऐसे प्रभु आत्मज्ञ
महादेव: = महान् इन्द्रादीनामाराध्यो देवो महादेवः, इन्द्रादिक भी महान् जिनेश्वर की आराधना करते हैं उनके द्वारा आराध्य हैं इसलिए महादेव हैं।
महेशिता = ईष्टे ई ऐश्वर्यवान् भवतीत्येवंशीलो ईशिता, महान् ईशिता महेशिता = जो अनन्तज्ञानादि व समवसरणादि लक्ष्मी के महास्वामी हैं; इसलिए जिनेश्वर महेशित हैं।