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* जिनसहस्रनाम टीका - १०९ 2 महायशाः = महद्यशः पुण्यं गुणकीर्तनं यस्येति स महायशाः = महापुण्य गुणों की कीर्ति जिनकी फैली है वे जिन महायशा हैं।
महाधामाः = महद्धाम तेजो यस्येति महाधामाः, जिनका धाम तेज अत्यन्त विस्तृत है वे जिन महाधाम नाम से अलंकृत हैं।
महासत्त्वः = महत्सत्त्वं चित्तं बलं प्राणा यस्येति स महासत्त्वः । उक्तं चानेकार्थे =
सत्त्वं द्रव्ये गुणे चित्ते व्यवसायस्वभावयोः । पिशाचादावात्मभावे, बले प्राणेषु जंतुषु ।।
महान् सत्त्व चित्त (मन) बल (शक्ति) प्राण जिसके है वह महासत्त्व कहलाता है। अनेकार्थ कोश में-द्रव्य, गुण, चित्त, व्यवसाय, स्वभाव, पिशाचादि, आत्मभाव, बल, प्राण और जन्तु आदि अनेक अयों में शस्य शब्द का प्रयोग होता है। यहाँ पर सत्त्व शब्द का अर्थ-बल (शक्ति) चित्त, गुण लिया गया है जिसमें महान् बल, महागुण, महान् विस्तृत स्वभाव पाया जाता है वह महासत्त्व कहलाता है।
महाधृतिः = महती धृतिः संतोषो यस्येति महाधृतिः, धृतियोगविशेषे स्याद्धारणाधैर्ययोः सुख्खे। संतोषाध्वरयोश्चापि = जिनके महती धृति, महान् संतोष गुण प्राप्त हुआ है, वह महाधृति है।
महाधैर्यो महावीर्यो महासम्पन्महाबलः । महाशक्तिर्महाज्योतिर्महाभूतिर्महाद्युतिः॥९॥
अर्थ : महाधैर्य, महावीर्य, महासम्पत्, महाबल, महाशक्ति, महाज्योति, महाभूति, महाद्युति ये आठ नाम जिनदेव के हैं।
___टीका - महाधैर्यः = महधैर्य भयेऽप्यनाकुलता यस्येति महाधैर्य:- भय प्राप्त होने पर भी प्रभु के मन में जरा भी आकुलता नहीं होती, वे महाधैर्यवान
महावीर्यः = महद्वीर्य तेजो यस्येति महावीर्यः तथानेकार्थे - वीर्य तेजः