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* जिनसहस्रनाम टीका - ११२ 2 महानन्दः = महान् आनंद: सौख्यं यस्येति स महानन्दः, अथवा महेन तच्चरणपूजाया आनन्दो भव्यानां यस्मादिति महानन्दः = महान् आनन्द सुख जिनको है, वे जिनराज महान् आनन्द के धारक हैं अथवा प्रभु की पूजा करने में भव्यों को आनन्द की प्राप्ति होती है अतः प्रभु महानन्द हैं।
महाकविः = महाश्चासौ कविः महाकविः। तथाचोक्तमार्षे = सुश्लिष्टपदविन्यासं, प्रबंधं रचयन्ति ये। श्रव्यबंधप्रसन्नार्थं ते महाकवयो मताः।
प्रभु महान् कवि हैं, क्योंकि कवि किसे कहते हैं- श्लेषयुक्त पदों की रचना जिसमें है तथा जिसका प्रबंध श्रवण करने योग्य है तथा जिसमें प्रसाद पूर्ण अर्थ रचना है ऐसा प्रबन्ध जो रचते हैं वे महाकवि माने जाते हैं। ऐसा महाकवि का लक्षण है।
महामहा महाकीर्तिर्महाकान्तिर्महावपुः । महादानो महाज्ञानो महायोगो महागुणः॥११॥
अर्थ : महामहा, महाकीर्ति, महाकान्ति, महावपु, महादान, महाज्ञान, महायोग, महागुण ये प्रभु के सार्थक आठ नाम हैं।
टीका - महामहाः = महत् महः तेजः यस्य स महामहाः, तथा चोक्तमनेकार्थे - महस्तेजस्युत्सवे च = महान् विशाल मह याने तेज जिनका ऐसे प्रभु महामहा कहे जाते हैं।
महाकीर्तिः = महती कीर्तिः यशो यस्येति स महाकीर्तिः तथा चोक्तं - कीर्तिर्यशसि विस्तारे प्रासादे कमेऽपि च = जिनकी महती महान् कीर्ति यश है फैला हुआ चारों ओर, उसे महाकीर्ति कहते हैं । कीर्ति के यशविस्तार, प्रासाद, कीचड़ आदि अनेक अर्थ हैं।
महाकांतिः = महती कान्तिः शोभा यस्येति स महाकांतिः । तथा चोक्तं - "कांतिः शोभाकमनयो;' महान् है कांति शोभा जिसकी वह महाकांति है।
महावपुः = महद्वपुः शास्ता कृतिर्यस्येति स महावपुः । उक्तं च - वपुः शास्ता कृतौ देहे = अतिशय सुन्दर शरीर को महावपु कहते हैं।