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* जिनसहस्रनाम टीका ९७
(किसी प्रति में 'निरीक्ष' भी पाठ है जिसका अर्थ है चक्षु रहित | भगवान चक्षु सर्व पदार्थों को जानते हैं अतः निरीक्ष हैं ।)
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पुंडरीकाक्षः = पुंडरीकवत् कमलवत् अक्षिणी लोचने यस्य स पुंडरीकाक्षः
कमल का नाम पुण्डरीक है। अर्थात् भगवान की दो आँखें कमल कलिकाकार अति मनोहर दीखती हैं इसलिए उनका नाम पुण्डरीकाक्ष रखा गया है।
पुष्कलः = पुष्यति पुष्णाति वा पुष्कलः 'पुषेकलक्, पूर्णः श्रेष्ठ इत्यर्थः भगवान केवलज्ञान से पुष्ट अर्थात् पूर्ण हुए अतः वे पुष्कल हैं। वा- पुष्कल श्रेष्ठ वा परिपूर्ण ज्ञान युक्त होने से पुष्कल कहे जाते हैं।
पुष्करेक्षण: = पुष्करवत् अम्बुजवत् ईक्षणे लोचने यस्य स पुष्करेक्षणः कमललोचनः इत्यर्थः । उक्तमनेकार्थे .
. द्वीपतीर्थाहि पौषधान्तरे ! तूर्यास्येऽसिफले कांडे शुंडाग्रे खे जलेऽम्बुदे ||
कमल को पुष्कर भी कहते हैं । अर्थात् पुष्कर-कमल के समान आँखें जिनकी हैं, उनको पुष्करेक्षण कहते हैं ।
अनेकार्थ कोश में द्वीप, तीर्थ, अहि (सर्प), पक्षी, राग, औषध, तूर्य (वादित्र ) मुख, तलवार, फलक, समूह, शुंड, अग्र, आकाश, जल, बादल आदि अनेक अर्थ में पुष्करेक्षण शब्द का प्रयोग होता है। अतः आप तीर्थ हैं संसार - रोगनाशक औषध हैं। संसार - मल-नाशक जल हैं, आदि अनेक अर्थ भी हैं।
सिद्धिदः = सिद्धिं स्वात्मोपलब्धिं मुक्तिं कार्यनिष्पत्तिं ददाति इति सिद्धिदः । उक्तं चानेकार्थे 'सिद्धिस्तु मोक्षे निष्पत्तियोगयो:' सम्पूर्ण कर्मों का क्षय होने से जो आत्मा को स्वस्वरूप की प्राप्ति होती है उसे सिद्धि कहते हैं ऐसी सिद्धि भगवान भव्यों को देते हैं। वा भगवान् की भक्ति से भव्यों के मनोवांच्छित कार्यों की निष्पत्ति होती है अतः सिद्धिद कहलाते हैं। सिद्धिस्वात्मोपलब्धि कार्यनिष्पत्ति मोक्ष, योगों की पूर्णता आदि अनेक अर्थ हैं।
सिद्धसंकल्पः = सिद्धवत् निष्पन्नवत् संकल्प: चिंताभिप्रायो यस्य स
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