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* जिनसहस्रनाम टीका - १०२ * लक्ष्मीर्यस्य स अनादिनिधनः, आजन्मपर्यंत लक्ष्मीवान् इत्यर्थः। भगवान्समवसरणस्थितोऽपि लक्ष्म्या नवनिधि लक्षणया न त्यक्तो यतः अनादिनिधन:=
जिनदेव की आदि, उत्पत्ति तथा निधन, मरण नहीं है। अत: वे अनादिनिधन हैं। अथवा 'अन' शब्द का अर्थ जीवित होता है उसका आदि-जन्म उसे प्राप्त कर जन्म से प्रारम्भ करके जिनको अतिशय धन की लक्ष्मी की प्राप्ति हुई ऐसे जिनराज को अनादिनिधन कहते हैं। भगवान आजन्म लक्ष्मीवान् थे। उन्हें समवसरण में रहते हुए भी उनको लक्ष्मी ने नहीं छोड़ा। तथा नवनिधियों से प्रभु सेवित थे। अत: वे अनादिनिधन हैं।
व्यक्तः = व्यजते स्म व्यक्तः प्रकट इत्यर्थः, अथवा व्यनक्त्यर्थं स व्यक्तः - भगवान का स्वरूप प्रकट है, अतः उनको व्यक्त कहते हैं। अथवा भगवान् अपनी दिव्य वाणी से जीवादि पदार्थों का स्पष्ट विवेचन करते हैं। अत: वे व्यक्त हैं।
___ व्यक्तवाक् = व्यक्ता सर्वेषां प्राणिनां गम्या वाकू भाषा यस्य स व्यक्तवाक् स्पष्टार्थवादीत्यर्थः = सारे प्राणियों को भगवान जिनेश्वर की वाणी का, भाषा का अभिप्राय ज्ञात होता है, अत: वे व्यक्तवाक् हैं, स्पष्टार्थवादी हैं।
व्यक्तशासनः = व्यक्तं निर्मलं विरोधरहितं शासनं मतं यस्य स व्यक्तशासन; = जिनका शासन मत निर्मल है, विरोध रहित है वह व्यक्तशासन यह नाम सार्थक है।
युगादिकृत् = युगादिकृतवान् युगादिकृत्। उक्तमाः
आषाढमासबहुलप्रतिपद्दिवसे कृतीम्। कृत्वा कृतयुगारंभं प्राजापत्यमुपेयिवान् ।। आदि जिनेश्वर ने युग का प्रारम्भ किया अतः वे युगादिकृत् हैं।
महापुराण में ऐसा उल्लेख आया है, भगवान वृषभदेव आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा के दिन युग का प्रारम्भ करके प्रजापति हो गये थे। भगवान ने प्रजा को असि, मसि, कृष्यादिक, पापरहित वृत्ति का उपदेश दिया। लोग पापरहित वृत्ति से सुख से रहने लगे। इस प्रकार लोगों को जीवनवृत्ति बताने वाले प्रभु ने कृतयुग का आरम्भ किया। अत: उनको युगादिकृत् कहते हैं।