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* जिनसहस्रनाम टीका ५७
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अथवा विश्वं नयतीति सुकर्म्म प्रापयति स विश्वनायकः = जिनदेव विश्व के - त्रैलोक्य के नायक स्वामी हैं, विश्व के जीवों को शुभ कर्म के प्रति ले जाते हैं उनको देवपूजा, सामायिकादि शुभ कर्म में प्रवृत्त कराते हैं अतः वे विश्वनायक हैं ।
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विश्वासी = विश्वासो विद्यते यस्य स विश्वासी तदस्यास्तीति मत्वंत्वीन् अथवा विश्वस्मिन् लोकालोके केवलज्ञानापेक्षया आस्ते तिष्ठतीत्येवंशीलः विश्वाशी: विश्वास को धारण करने से आप विश्वासी हैं अथवा केवलज्ञान की अपेक्षा से आप विश्वभर में आसू अर्थात् निवास करते हैं, रहते हैं अतः आप विश्वासी हैं।
विश्वरूपात्मा = विशंति प्रविशति पर्यटति प्राणिनो यस्मिन्निति विश्वं त्रैलोक्यं तद्रूपस्तदाकारः आत्मा लोकपूरणावसरे जीवो यस्येति स विश्वरूपात्मा अथवा विशंति जीवादयः पदार्थाः यस्मिन्निति विश्वं केवलज्ञानं स विश्वरूपात्मा. 'अशिलटिस्वटिविशिभ्यः कः ' = जिसमें प्राणी विशन्ति प्रवेश करते हैं, पर्यटन्ति भ्रमण करते हैं, वह विश्व त्रैलोक्य है। लोकपूरण समुद्घात के समय जिनेश्वर का आत्मा तदाकार विश्वाकार होता है अतः वे विश्वरूपात्मा हैं । अथवा जीवादिक पदार्थ जिसमें विशन्ति प्रवेश करते हैं उसे विश्व कहना योग्य है जिनेश्वर के केवलज्ञान में सम्पूर्ण जीवादिक पदार्थों ने प्रवेश किया है अत: केवलज्ञान को विश्व कहना उचित ही है अतः केवलज्ञान स्वरूप होने से आप विश्वरूयात्मा हैं । अथवा आपकी आत्मा अनन्त पर्याय तथा अनन्त गुण रूप है अतः आप विश्वरूपात्मा हैं।
विश्वजित् = विश्वं संसारं जितवान् स विश्वजित् = प्रभु ने संसार को जीत लिया है अतः वे विश्वजित् हैं। आप सर्व जगत् को जीतने वाले हैं अत: विश्वजित् हैं।
विजितांतक: = विजितः समूलकाषं कषितः अंतको यमो येन स विजितांतक: अथवा विजित: अंतकः परमपदापेक्षया मृत्युरहितत्वात् = जिनदेव ने अन्तक को, यम को मूलसहित नष्ट किया अत: वे विजितान्तक है । अथवा परमपद मोक्ष की अपेक्षा से उन्होंने अन्तक को जीत लिया और वे मृत्युरहित हो गये । अतः अब तक मृत्यु को जीत लेने से वे विजितांतक हैं।
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