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* जिनसहस्रनाम टीका - ७५ * ब्रह्मेट् = ब्रह्मणो ज्ञानस्य वृत्तस्य मोक्षस्य इट् स्वामी स ब्रह्मेट् = ज्ञान, चारित्र और भोक्ष को ब्रह्म कहते हैं। इनके इट् स्वामी-जिनेश्वर हैं, इसलिए वे ब्रह्मेट हैं। आप केवलज्ञान के स्वामी हैं अत: ब्रह्मेट हैं।
महाब्रह्मपदेश्वरः - ब्रह्मणः केवलज्ञानस्य पदं स्थानं ब्रह्मपदं महच्च तद्ब्रह्मपदं च महाब्रह्मपदं मोक्षस्तस्य ईश्वर: स्वामी स महाब्रह्मपदेश्वरः, अथवा महाब्रह्माणो गणधरदेवादय: पदयोश्चरणकमलयोः लग्नाः ते महाब्रह्मपदाः तेषामीश्वर: महाब्रह्मपदेश्वर: अथवा महाब्रह्मपदं समवसरणं तस्येश्वर: महाब्रह्म पदेश्वर: - ब्रह्म जो केवलज्ञान उसका पदस्थान मोक्ष है वह मोक्ष महाब्रह्म पद है। उसके ईश्वर स्वामी ऐसे जिनेश्वर महाब्रह्मपदेश्वर हैं। अथवा गणधर देवादिक महाब्रह्म हैं। वे गणधर देवादिक जिनेश्वर के चरणों का आश्रय लेते हैं। ऐसे गणधर देवों के जिनेश्वर ईश्वर हैं, अत: महाब्रह्मपदेश्वर हैं। अथवा समवसरण को महाब्रह्मपद कहते हैं। जिनेन्द्र उसके ईश्वर हैं। अतः वे महाब्रह्मपदेश्वर हैं।
सुप्रसन्नः = सुष्टु अतिशयेन प्रसन्नः प्रहसितवदनः स्वर्गमोक्षप्रदायको वा सुप्रसन्न: - जिनेश्वर सुष्टु अतिशय प्रसन्न - प्रहसित-बदम-हास्ययुक्त मुख वाले होते हैं। अथवा स्वर्ग तथा मोक्ष को देने वाले होने से सुप्रसन्न हैं। आप सदा प्रसन्न रहते हैं अत: सुप्रसन्न हैं।
प्रसन्नात्मा = प्रसन्नो निर्मलः आत्मा स्वभावो यस्य - स प्रसन्नात्मा निर्मलात्मेत्यर्थः - जिनेश्वर प्रसन्ननिर्मल आत्मस्वभाव जिनका ऐसे होते हैं,अत; वे प्रसन्नात्मा हैं।
ज्ञानधर्मदमप्रभुः = ज्ञानं केवलज्ञानं, धर्मो दयालक्षणः दमः तप: क्लेशसहिष्णुत्वं ज्ञानधर्मदमास्तेषां प्रभुः,स्वामी स ज्ञानधर्मदमप्रभुः = ज्ञान-केवलज्ञान, धर्म-दयालक्षणं और दम तप:क्लेश को सहन करना, इनके अर्थात् ज्ञान, दयालक्षण-धर्म और दम-तप; क्लेश को सहन करना इन बातों के जिनेश्वर प्रभु हैं, स्वामी हैं। आप केवलज्ञान, उत्तमक्षमा आदि धर्म और इन्द्रियनिग्रहरूप दम के स्वामी हैं।
१. महापुराण