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* जिनसहस्रनाम टीका - ८१ १ लाख गुणों के वे उत्पत्ति स्थान हैं। अथवा छियालीस गुणों के आकर हैं। अरिहंतों के ४६ गुण, सिद्धों के आठ, आचार्यों के ३६, उपाध्यायों के २५ और साधुओं के २८ गुण होते हैं। उन गुणों का आकर (खान) होने से आप गुणाकर हैं।
गुणांभोधिः = गुणानां चतुरशीतिलक्षगुणानामम्भोधिर्महार्णवः गुणांभोधि: = प्रभु चौरासी लाख गुणों के समुद्र हैं इसलिए गुणांभोधि हैं।
गुणज्ञः = गुणान् जानातीति गुणज्ञः = प्रभु गुणों को जानते हैं। अत: गुणज्ञ हैं।
गणनायक: = गणानां द्वादशगणानां नायक; स्वामी गणनायकः = १२ गों के नायक प्र गायक है।' पाटावर गुणनायकः = गुणों के स्वामी हैं इसलिए गणधर आपको गुणनायक भी कहते हैं।
गुणादरी गुणोच्छेदी निर्गुणः पुण्यगीर्गुणः । शरण्य: पुण्यवाक्पूतो वरेण्यः पुण्यनायकः ॥४॥ अगण्यः पुण्यधीगण्यः पुण्यकृत् पुण्यशासनः । धर्मारामो गुणग्राम: पुण्यापुण्यनिरोधकः ।।५।।
अर्थ : गुणादरी, गुणोच्छेदी, निर्गुण, पुण्यगी, गुण, शरण्य, पुण्यवाक्, पूत, वरेण्य, पुण्यनायक, अगण्य, पुण्यधी, गण्य, पुण्यकृत्, पुण्यशासन, धर्माराम, गुणग्राम, पुण्यपापनिरोधक, ये १८ नाम जिनेश्वर के हैं।
टीका - गुणादरी = गुणे सत्वादौ आदरोऽस्यास्तीति गुणादरी, उक्त चानेकार्थे - गुणो ज्या सूदतंतुषु ।
रज्जो सत्वादी संध्यादौ शौर्यादौ भीमइन्द्रिये। रूपादावप्रधाने च दोषेन्यस्मिन् विशेषणे॥ सत्त्वादि ज्ञानादि गुणों में जिनेश्वर का आदर रहता है इसलिए वे गुणादरी
गुण, ज्या (डोरी), सूद, तंतु, रजु (रस्सी) सत्त्व आदि (सत्त्व, रज, तम)
१. महापुराण - पृ. ६१३, २५वा पर्व